जनिए आज अहोई अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त,पूजा विधि व व्रत कथा

28 Oct, 2021
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अहोई अष्टमी 28 अगस्त 2021 : पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु, करियर में सफलता, आरोग्य जीवन और सुख-समृद्धि के लिए पूरे श्रद्धा भाव से अहोई माता की पूजा करती हैं और निर्जल उपवास रखती हैं। मान्यता है कि अहोई अष्टमी के दिन से दिवाली की शुरुआत भी हो जाती है। इस दिन मां पावर्ती के अहोई स्वरूप और गणेश जी की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान के लिए व्रत रखती हैं तो बच्चे भी अपनी मां को खुश करने के लिए उन्हें उपहार देते हैं।

अष्टमी तिथि व्रत की पूजा विधि: अहोई अष्टमी के दिन महिलाओं को सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। शुभ मुहूर्त में पूजा के लिए गेरू पर दीवार से अहोई माता का चित्र बनाएं, साथ ही सेह और उनके सात पुत्रों का चित्र भी बनाएं।आप चाहें तो दीवार पर चित्र बनाने की जगह मार्केट से खरीदे गए कैलेंडर का भी इस्तेमाल भी कर सकती हैं।

फिर एक कलश जल से भरकर पूजा स्थल पर रख दें। फिर चावल और रोली से अहोई माता की पूजा करें। अब अहोई माता को मीठे पुए या फिर आटे के हलवे का भोग लगाएं। अब हाथ में गेहूं के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें। फिर शाम के समय तारे निकलने के बाद अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलें।

अहोई अष्टमी व्रत के लिए सामग्री: अहोई माता मूर्ति, माला, दीपक, करवा, अक्षत, पानी का कलश, पूजा रोली, दूब, कलावा, श्रृंगार का सामान, श्रीफल, सात्विक भोजन, बयाना, चावल की कोटरी, सिंघाड़े, मूली, फल, खीर, दूध व भात, वस्त्र, चौदह पूरी और आठ पुए आदि।

अहोई अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त :
अहोई अष्टमी का व्रत 28 अक्टूबर 2021 दिन बृहस्पतिवार।
पूजा का शुभ मुहूर्त- 05:39 PM से 06:56 PM
तारों को देखने के लिए सांझ का समय- 06:03 PM
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय-11:29 PM

अहोई अष्टमी व्रत की कथा: प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बाधूंगी। स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं, अचानक साहुकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।

छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है।

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