पीएम मोदी ने अपने 16 सूत्रीय प्रोग्राम के तहत रोजगार को मुख्यतया प्रदान करते हुए सभी मंत्रालय के सचिवों को निर्देश दिए है कि वह जल्द ही इसका आंकड़ा प्रकशित करें की किस विभाग और मंत्रालय में कितने पद खाली हैं.
नई दिल्ली: हाल ही के दिनों में देखें तो मोदी सरकार दो मोर्चों पर काफी घिरी हुई नजर आ रही है. जिसमें सबसे पहले महंगाई और रोजगार है जिसको लेकर विपक्ष जहां संसद से सड़क तक हमलावर है तो वहीं आम लोगों में भी इस बात को लेकर नाराजगी है. वर्तमान समय की वैश्विक परिस्थितियों को देखे तो महंगाई को फिलहाल नियंत्रित करना एक बहुत बड़ी चुनौती है. तो दूसरी ओर रोजगार को लेकर युवा लगातार सरकार के खिलाफ हल्ला-बोल रहे हैं.
और यह भी पढ़ें- Grammy Award 2022: कौन हैं फाल्गुनी शाह ? जिन्हें ग्रैमी अवार्ड की जीत पर पीएम मोदी ने दी बधाई
हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के चुनाव में भी देखें तो रोजगार बड़ा मुद्दा था. इससे पहले बिहार चुनाव के दौरान बेरोजगारी एक बड़े मुद्दे के तौर पर सामने आया था. यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोजगार को लेकर गंभीरता दिखानी शुरू कर दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ तौर पर सचिवों को 16 सूत्रीय के माध्यम से सुझाव दिया है कि विनिर्माण और रोजगार सृजन को गति देने के लिए निजी क्षेत्र का समर्थन करना बेहद ही आवश्यक है.
वही पीएम मोदी ने अपने 16 सूत्रीय प्रोग्राम के तहत रोजगार को मुख्यतया प्रदान करते हुए सभी मंत्रालय के सचिवों को निर्देश दिए है कि वह जल्द ही इसका आंकड़ा प्रकशित करें की किस विभाग और मंत्रालय में कितने पद खाली हैं, वहीं बिनेट सचिव राजीव गौबा ने सभी सचिवों को पत्र लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 16 सूत्रीय निर्देशों से अवगत कराया है. यह पत्र दो अप्रैल को पीएम मोदी की सचिवों के साथ हुई बैठक के बाद लिखा गया है. साथ ही पीएम मोदी के निर्देशों के बारे में विस्तार से लिखा गया है. बैठक के दौरान पीएम मोदी ने स्पष्ट किया था कि निजी और सरकारी क्षेत्र में रोजगार पैदा करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए. मौजूदा खाली पदों को भरने के लिए सभी मंत्रालय और विभाग तुरंत कदम उठाएं.
पीएम मोदी के 16 सूत्रीय पत्र के सुझाव अनुसार राज्यों के लिए उस राजकोषीय अनुशासन का भी जिक्र किया गया है, साथ ही कहा गया कि राज्य स्तर पर इस संबंध में उपयुक्त तरीके से संचार किए जाने की आवश्यकता है. आगे गौबा ने पत्र में कहा, इस संबंध में, नीतिगत उपायों और निर्णयों के दीर्घकालिक राजकोषीय प्रभावों का विश्लेषण किया जाना चाहिए और इसे राज्य सरकार के साथ साझा किया जाना चाहिए.
माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक के दौरान कुछ वरिष्ठ नौकरशाहों ने कई राज्यों द्वारा घोषित लोक-लुभावन योजनाओं पर चिंता जताई थी और दावा किया था कि वे आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं हैं और राज्य सरकारें इन लोकलुभावन योजनाओं के माध्यम से श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट को भारत में भी पैदा कर सकती हैं. आपको आगे बताते चले कि मोदी ने शनिवार को लोक कल्याण मार्ग स्थित अपने शिविर कार्यालय में सभी विभागों के सचिवों के साथ चार घंटे की लंबी बैठक की थी.