राजनीतिक पदयात्राओं की शुरुआत का श्रेय महात्मा गांधी को दिया जाता है। आप कह सकते हैं कि महात्मा गांधी राजनीतिक पदयात्राओं के मुख्य वास्तुकार थे।
नई दिल्ली: 7 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरु हुई राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 19 दिसंबर को अलवर में प्रवेश करन जा रही है। भारत जोड़ो यात्रा को शुरू हुए कुल 104 दिन हो गए हैं। यात्रा 24 दिसंबर को दिल्ली में प्रवेश करेगी और 24 दिसंबर से 2 जनवरी तक यात्रा पर ब्रेक रहेगा। ब्रेक के बाद यात्रा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और अंत में जम्मू और कश्मीर की ओर बढ़ेगी। गौरतलब है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 7 सितंबर से कन्याकुमारी से शुरू हुई थी। जो कि अब तक सात राज्यों तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश से गुजरते हुए अब राजस्थान में है। कांग्रेस की 3750 किमी की भारत जोड़ो यात्रा 12 राज्यों से गुजरेगी। यह दक्षिण में कन्याकुमारी से उत्तर में कश्मीर तक 3,750 किमी का सफर पूरा करेगी। यह यात्रा मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान के बाद दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब से होते हुए जम्मू कश्मीर पहुंचकर समाप्त होगी। बता दें, इसे मूल्य वृद्धि, बेरोजगारी, राजनीतिक केंद्रीकरण और विशेष रूप से “भय, कट्टरता” की राजनीति और “नफरत” के खिलाफ लड़ने के लिए बनाया गया था। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से पहले भी कई राजनीतिक यात्रा निकल चुकी है। आज हम आपको भारतीय राजनीतिक में यात्रओं के इतिहास के बारे में बताएंगे….
महात्मा गांधी ने की थी राजनीतिक पदयात्राओं की शुरुआत

राजनीतिक पदयात्राओं की शुरुआत का श्रेय महात्मा गांधी को दिया जाता है। आप कह सकते हैं कि महात्मा गांधी राजनीतिक पदयात्राओं के मुख्य वास्तुकार थे। वैसे तो महात्मा गांधी अक्सर पैदल ही चला करते थे, जिससे आम लोगों से उनका सम्पर्क भी होता था और भारत के लोगों में स्वतंत्रता के लिए एक जनचेतना भी जागती थी। महात्मा गांधी की ऐसी ही एक मशहूर पद यात्रा थी दांडी यात्रा, जिसकी शुरुआत उन्होंने साबरमती से की थी। तब उनके साथ सिर्फ 78 स्वयंसेवक थे और जब 386 किलोमीटर लंबी ये यात्रा 6 अप्रैल 1930 को खत्म हुई, तब महात्मा गांधी के साथ सैकड़ों लोग जुड़ चुके थे। इस यात्रा का इतना बड़ा असर हुआ था कि एक वर्ष तक पूरे भारत में नमक सत्याग्रह चलता रहा और इसी घटना से सविनय अवज्ञा आंदोलन की बुनियाद पड़ी। बता दें, सविनय अवज्ञा आंदोलन का अर्थ- सविनय अवज्ञा का शाब्दिक अर्थ होता है। किसी चीज का विनम्रता के साथ तिरस्कार या उल्लंघन करना। इसे सरल भाषा में ऐसे समझे जिसमें अहिंसा के साथ हिंसा की कोई गुंजाइश न हो।
महात्मा गांधी की दांडी यात्रा का उद्देश्य

दांडी मार्च जो गांधीजी और उनके स्वयं सेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को प्रारम्भ की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेजों द्वारा बनाए गए ‘नमक कानून को तोड़ना’। गांधीजी ने साबरमती में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया।
क्या था नमक कानून ?

नमक कानून ब्रिटिश सरकार द्वारा उपनिवेश काल में भारत में लागू किए गए सबसे घृणित कानूनों में से एक था। ब्रिटिश सरकार ने इस कानून के माध्यम से नमक के प्रोडक्शन और बेचने पर एकाधिकार स्थापित कर लिया था। चूंकि भारत में जन-सामान्य द्वारा घरेलू उपयोग हेतु नमक का उत्पादन सदियों से स्थानीय स्तर पर ही किया जाता रहा है, परन्तु ब्रिटिश सरकार ने नमक कानून द्वारा इस पर प्रतिबंध लगा दिया, यानी अब ब्रिटिश सरकार के अलावा ना तो कोई नमक का उत्पादन कर सकता था और ना ही उसका विक्रय। अब जनता को मजबूरन ऊंचे मूल्य (लगभग 14 गुना) पर नमक को खरीदना पड़ता था। आम जन में इस कानून को लेकर भयंकर असंतोष फैला क्योंकि नमक हर घर की रसोई का अभिन्न हिस्सा था। गांधीजी ने इस कानून के खिलाफ नमक सत्याग्रह भी शुरू किया था जिसके तहत 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी की अगुवाई में साबरमती आश्रम से दांडी गांव (गुजरात) के लिए पदयात्रा शुरू हुई थी। 24 दिन में 350 किलोमीटर चलकर गांधीजी ने दांडी पहुंचकर ‘नमक कानून’ तोड़ा।
1982 में निकली एनटी रामाराव की चैतन्य रथम यात्रा
आंध्र प्रदेश में वर्ष 1982 में एनटी रामाराव ने चैतन्य रथम यात्रा निकाली। 75 हजार किलोमीटर लंबी इस यात्रा ने प्रदेश के चार चक्कर लगाए जोकि गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में है। 29 मार्च 1982 को नंदमूरी तारक रामाराव ने तेलुगु सम्मान के मुद्दे पर तेलुगुदेशम पार्टी का गठन किया और देश की पहली राजनीतिक रथयात्रा शुरू की। एक शेवरले वैन में बदलाव करके रथ बनवाया गया। एनटीआर एक दिन में 100-100 जगहों तक रुकते। वह इतना लोकप्रिय थे कि जनता इंतजार करती थी, महिलाएं उनकी आरती उतारती थीं। यात्रा के बाद विधानसभा चुनाव में तेलुगुदेशम पार्टी को 294 में से 199 सीटें मिलीं और एनटीआर आंध्र प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने।
1983, चंद्रशेखर

समाजवादी नेता चंद्रशेखर ने 1983 में राहुल गांधी की दादी और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ 4,200 किलोमीटर की भारत यात्रा की, जो तीन साल पहले उनकी जनता पार्टी को हराकर सत्ता में लौटी थीं। चंद्रशेखर लोगों का विश्वास वापस जीतना चाहते थे। कन्याकुमारी से दिल्ली तक की अपनी चार महीने की पदयात्रा के अंत में वह राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गए। वह गुरुग्राम के भोंडसी में अपने आश्रम में थे। जब उन्होंने इंदिरा गांधी की हत्या की खबर सुनी।
साल 1989 के लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर ने एक लोकप्रिय नेता और राजीव गांधी के दोस्त से दुश्मन बने वीपी सिंह और दूसरी पार्टियों ने जनता दल का गठन किया। चंद्रशेखर को वीपी सिंह के प्रधानमंत्री बनने का तरीका पसंद नहीं आया। लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने अपना वीपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और ये सरकार गिर गई। बाद में चंद्रशेखर ने राजीव गांधी के समर्थन से अपनी सरकार बनाई और प्रधानमंत्री बने, लेकिन कांग्रेस की समर्थन वापसी के बाद में चंद्रशेखर ने राजीव गांधी के समर्थन से अपनी सरकार बनाई और प्रधानमंत्री बने, लेकिन कांग्रेस की समर्थन वापसी के बाद महज 8 महीनों में ही ये सरकार गिर गई।
1990 में निकली आडवाणी की राम रथयात्रा

वर्ष 1990 में भाजपा ने राममंदिर निर्माण आंदोलन को तेज करते हुए पूरे देश में भ्रमण करते हुए अयोध्या तक रथयात्रा की घोषणा की। इस यात्रा के सारथी बने लालकृष्ण आडवाणी। रथयात्रा 25 सितंबर को गुजरात में ख्यात तीर्थस्थल सोमनाथ से शुरू हुई और सैकड़ों शहरों व गांवों से होकर गुजरते हुए बिहार पहुंची। तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद ने समस्तीपुर में रथयात्रा रोककर आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। इस रथयात्रा ने भाजपा को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में एक नई पहचान और जनता के बीच लोकप्रियता दी। कहा जाता है कि यहीं से भाजपा की राजनीतिक यात्रा ने करवट ली और एक नए दौर में प्रवेश किया। रथयात्रा के बीच राममंदिर आंदोलन में भारी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 120 सीटें मिलीं जो पिछले चुनाव से सीधे 35 अधिक थीं।
वाईएस राजशेखर रेड्डी, 2003

साल 2003, जब आंध्र प्रदेश विभाजित नहीं हुआ था, उस समय कांग्रेस निराशाजनक थी। राज्य में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने करीब 3 दशकों तक शासन किया था। प्रदेश कांग्रेस के नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने सत्ता का रास्ता समझा। उन्होंने ‘प्रजा प्रस्थानम’ नामक दो महीने की पदयात्रा महीने की पदयात्रा की। उन्होंने अपने चुनाव अभियान के हिस्से के रूप में राज्य के कई जिलों में भीषण गर्मी के महीनों के दौरान लगभग 1,500 किमी की पैदल यात्रा की।
बड़े पैमाने पर जन-संपर्क कार्यक्रम ने लोकप्रिय भावनाओं को उलट दिया और चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाले टीडीपी के शासन को समाप्त कर दिया। रेड्डी ने मई 2004 में मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और 2009 में विधानसभा चुनाव भी जीते। हालांकि उसी साल एक हेलीकॉप्टर हादसे में उनका निधन हो गया।
2004 में निकली वाईएस राजशेखर रेड्डी की पैदलयात्रा

कांग्रेस के कद् दावर नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने वर्ष 2004 में आंध्र प्रदेश के चेवेल्ला शहर से 1,500 किमी पैदलयात्रा की शुरुआत की। यह यात्रा 11 जिलों से होकर गुजरी। जनता राजशेखर को मसीहा मानती थी, लोग उनसे मिलने उमड़े । विधानसभा चुनाव में 294 में से 185 सीटों पर कांग्रेस की जीत के साथ 10 वर्ष से जारी टीडीपी का शासन खत्म हुआ और वाईएस राजशेखर रेड्डी मुख्यमंत्री बने।
2017 में निकली जगनमोहन रेड्डी की प्रजा संकल्प यात्रा

आंध्र प्रदेश में ही वर्ष 2017 में निकाली गई इस यात्रा ने युवा जगनमोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया। वर्ष 2009 में वाईएस राजशेखर रेड्डी की हेलीकाप्टर दुर्घटना में मौत के बाद कांग्रेस ने उनके बेटे जगनमोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने से इन्कार कर दिया था। इसके बाद जगमोहन ने वाईएसआर कांग्रेस पार्टी का गठन किया। पिता की आंध्र प्रदेश यात्रा की तरह पदयात्रा निकाली। जो उनके राजनीतिक करियर की खेवनहार बनी। छह नवंबर 2017 में उन्होंने कडप्पा जिले से पदयात्रा शुरू की। जो 430 दिन में 13 जिलों के 125 विधानसभा क्षेत्रों से 3,648 किमी की दूरी तय करते हुए श्रीकाकुलम तक पहुंची। रथयात्रा के बाद वर्ष 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस को 175 में से 152 सीटों पर विजय मिली और जगनमोहन सीएम बने।
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