इत्र नगरी कन्नौज की इत्रदान हस्तकला: विरासत का संघर्ष, पुनरुत्थान की संभावना

17 May, 2024
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कन्नौज, सुगंधित इत्रों का शहर, एक अनमोल विरासत के विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रहा है – इत्रदान निर्माण की हस्तकला। यह कला, जो पीढ़ियों से कौशल और सौंदर्य का प्रतीक रही है,आज एक अनोखे संकट से जूझ रही है। यहाँ की पारंपरिक हस्तकला, जो कभी इत्र की शीशियों को संजोने के लिए इत्रदान बनाने में अपनी महारत रखती थी, अब आधुनिकता की चकाचौंध में अपनी पहचान खोती जा रही है

आज अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है, समय की कठोरताओं और संसाधनों की कमी के कारण विलुप्ति की ओर अग्रसर है।

इतिहास और महत्व:


कन्नौज के कटरा मोहल्ले की गलियों में बसी हस्तकला
कन्नौज के कटरा मोहल्ले में बसी हस्तकला की यह कहानी न सिर्फ इत्रदान की खूबसूरती बयान करती है, बल्कि उन कारीगरों के संघर्ष को भी दर्शाती है जो अपनी पीढ़ियों की विरासत को बचाने के लिए जूझ रहे हैं।
इत्रदान, सुगंधित तेल रखने के लिए लकड़ी से बने अलंकृत बर्तन, कन्नौज की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग हैं। इन इत्रदानों को कुशल कारीगर हाथों से तराशते और सजाते थे, जो कला और शिल्प कौशल का अद्भुत प्रदर्शन करते थे इन इत्रदानों की नक्काशी, जो कभी हाथों से छेनी और हथौड़े से की जाती थी, अब मशीनों के युग में अपनी बारीकी खो रही है।यह कला न केवल सौंदर्यपूर्ण थी, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए आजीविका का साधन भी थी।

आधुनिकता की आंधी में उड़ती परंपरा विलुप्ति के खतरे:

दुर्भाग्यवश, इत्रदान निर्माण की हस्तकला अपने अस्तित्व को बचाने का संघर्ष कर रही है आज के तकनीकी युग में, जहाँ हर काम मशीनों से होता है, वहाँ हस्तकला के इस पारंपरिक व्यापार को बचाए रखना एक चुनौती बन गया है। लागत और समय की बढ़ती मांग ने इस कला को विलुप्त होने की कगार पर ला दिया है।

आधुनिकीकरण का प्रभाव:

मशीनों ने हस्तशिल्प को प्रतिस्थापित कर दिया है, कम समय में अधिक लाभ की लालच लोगों को मशीन-निर्मित इत्रदान की ओर धकेल रही है।

कच्चे माल की कमी के कारण इत्रदान निर्माण के लिए आवश्यक लकड़ी और पीतल का तार की उपलब्धता चुनौतीपूर्ण हो गई है।

वनों की अवैध कटाई और खनन गतिविधियों के साथ बढ़ती महंगाई कारण कच्चे माल की कमी आदि अन्य कारण ने उत्पादन की लागत को बढ़ा दिया है। मशीन-निर्मित इत्रदान सस्ते होते के कारण महंगे हस्तनिर्मित इत्रदान की बिक्री घट रही है।

युवा पीढ़ी का रुझान: युवा पीढ़ी इस कला में रूचि नहीं दिखा रही है, अच्छी नौकरी और आसान जीवन की तलाश में वे अन्य क्षेत्रों की ओर रुख कर रहे हैं।

विरासत की वेदना: कैलाश नाथ शर्मा की धरोहर


कैलाश नाथ शर्मा, जिन्हें कभी इत्रदान की कला के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सम्मानित किया था, आज उनके पुत्र अमरनाथ शर्मा इस कला को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी यह वेदना है कि जिस कला को उनके पूर्वजों ने संजोया, वह आज बाजार की मांग और महंगाई के दौर में अपना अस्तित्व खो रही है।

सरकारी पहल:

हस्तकला को बचाने के लिए सरकार कुछ पहल कर रही है:
हस्तशिल्पियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करना।
प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
हस्तकला मेले का आयोजन करना।
लेकिन ये पहल पर्याप्त नहीं हैं। इत्रदान निर्माण की हस्तकला को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।

संकट में संस्कृति: क्या है समाधान?
इस संकट का समाधान खोजने की जरूरत है। क्या सरकारी सहायता, तकनीकी नवाचार, या बाजार की नई रणनीतियां इस पारंपरिक कला को बचा सकती हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर खोजना अब हम सभी की जिम्मेदारी बन गया है।

इत्रदान निर्माण की हस्तकला को बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

सार्वजनिक जागरूकता: लोगों को इस कला के महत्व और इसके विलुप्त होने के खतरे के बारे में जागरूक करना होगा।
बाजार का विस्तार: इत्रदान को नए बाजारों में पहुंचाना होगा, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और अंतररास्ट्रीय बाज़ार में उत्पाद की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी जिससे यह उत्पाद संही और सभी जगह पहुच सके जिससे यह अनूठी कला से निर्मित यह उत्पाद अपना अस्तित्व बचा सके

पंकज कुमार श्रीवास्तव,कन्नौज

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