सेवासदन 1918 ई. में प्रकाशित सेवासदन प्रेमचंद का हिन्दी में प्रकाशित होने वाला पहला उपन्यास था। यह मूल रूप से उन्होंने ‘बाजारे-हुस्न’ नाम से पहले उर्दू में लिखा गया ।
नई दिल्ली: आज 8 अक्टूबर है और आज के ही दिन हिंदी के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद्र की मृत्यु हुई थी। प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही गाँव में 31 जुलाई 1880 को हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी अजायबराय था। जो लमही में डाकमुंशी थे और उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था। उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से पढ़ने का शौक उन्हें बचपन से ही लग गया। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। 1910 में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया था।
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संघर्ष से भरा रहा मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन
सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में पिता का देहान्त हो जाने के कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनका पहला विवाह उन दिनों की परंपरा के अनुसार पंद्रह साल की उम्र में हुआ जो सफल नहीं रहा। वे आर्य समाज से प्रभावित रहे। जो उस समय का बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा-विवाह का समर्थन किया। और दूसरा विवाह 1906 में अपनी प्रगतिशील परंपरा के अनुरूप बाल-विधवा शिवरानी देवी से किया। उनकी तीन संताने हुईं- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव। 1910 में उनकी रचना सोज़े-वतन (राष्ट्र का विलाप) के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने तलब किया और उन पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया और उनकी प्रमुख कहानियां नष्ट कर दी। जिसमें दुनिया का सबसे अनमोल रतन, शेख मखमूर, यही मेरा वतन है, शोक का पुरस्कार और सांसारिक प्रेम शामिल थीं। पाँचों कहानियाँ उर्दू भाषा में थीं। कलेक्टर ने नवाबराय को हिदायत दी कि अब वे कुछ भी नहीं लिखेंगे, यदि लिखा तो जेल भेज दिया जाएगा। इस समय तक प्रेमचंद, धनपत राय नाम से लिखते थे। उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक और उनके अजीज दोस्त मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी। इसके बाद वे प्रेमचन्द के नाम से लिखने लगे। जीवन के अंतिम दिनों में प्रेमचंद गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे और उनका उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ पूरा भी नहीं हो सका। लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हुआ।
मुंशी प्रेमचंद्र के बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा है
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प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक थे । उनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था लेकिन प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा।
मुंशी प्रेमचंद्र का पहला उपन्यास
सेवासदन– 1918 ई. में प्रकाशित सेवासदन प्रेमचंद का हिन्दी में प्रकाशित होने वाला पहला उपन्यास था। यह मूल रूप से उन्होंने ‘बाजारे-हुस्न’ नाम से पहले उर्दू में लिखा गया लेकिन इसका हिन्दी रूप ‘सेवासदन’ पहले प्रकाशित हुआ। इसके अलावा गोदान उपन्यास प्रेमचंद का अंतिम और सबसे महत्त्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है।
मुंशी प्रेमचंद्र के प्रमुख नाटक
गोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवासदन, निर्मला और मानसरोवर मुंशी प्रेमचंद्र के प्रमुख नाटक है।
प्रेमचंद की सर्वोत्तम कहानियां
- बड़े घर की बेटी
- रानी सारन्धा
- नमक का दरोगा
- सौत
- आभूषण
- प्रायश्चित
- कामना
- मन्दिर और मस्जिद
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Edited By Deshhit News