नई दिल्ली : 2024 लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, सियासी सरगर्मी और चर्चाओं का दौर तेज होता जा रहा है।साथ राजनीतिक दलों को एक होने को लेकर जनता की राय में परिवर्तन देखा जा रहा है. हाल के एक सर्वे में बीजेपी को नुकसान होता हुआ दिखाया गया है. वहीं कांग्रेस की लोकप्रियता में इजाफा बताया गया है. चूंकि लोकसभा चुनाव में अभी लगभग एक साल का वक्त है, ऐसे में देश की राजनीतिक तस्वीर बदने की संभावानाएं जोर पकड़ रही हैं.

एक न्यूज़ चैनल के सर्वे के मुताबिक काफी हैरान करने वाले नतीजे सामने आए हैं. इस सर्वे के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के काम से लोग खुश नजर आ रहे हैं. बीजेपी के लिए अच्छी बात यह है कि मोदी सरकार की रेटिंग का ग्राफ लगातार ऊपर की ओर जा रहा है.

सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि सरकार से असंतुष्ट लोगों का प्रतिशत 14 प्रतिशत तक घटा है. आंकड़ों को देखें तो पिछले साल अगस्त महीने में 32 प्रतिशत लोग सरकार के काम से असंतुष्ट थे. वहीं अब सिर्फ 18 प्रतिशत लोग ही मोदी सरकार से असंतुष्ट नजर आ रहे हैं.
इस सर्वे में जो बात सामने आई है उसके मुताबिक आज चुनाव हुए तो महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार में बीजेपी को काफी सीटों का नुकसान होगा।लेकिन 2024 में एक बार फिर एनडीए की सरकार बनती हुई दिख रही है। इस सर्वे के मुताबिक अगर आज चुनाव हुए तो NDA को 298 सीटें, यूपीए के खाते में 153 सीटें जाती हुई दिख रही हैं तो वहीं अन्य को 92 सीटें मिल सकती हैं। वोट प्रतिशत की बात की जाए तो इस बार एनडीए को नुकसान हो रहा है। आज चुनाव हुए तो सर्वे के मुताबिक 43 प्रतिशत वोट बीजेपी को हासिल होंगे। 2019 लोकसभा चुनाव में एनडीए को 60 फीसदी वोट हासिल हुए थे। यूपीए को 29 प्रतिशत और अन्य को 28 प्रतिशत वोट हासिल हो सकते हैं। वहीं अलग-अलग दलों की बात की जाए तो बीजेपी को आज चुनाव हुए तो 284 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं कांग्रेस को 68 और अन्य के खाते में 191 सीटें जाती हुई दिख रही हैं।
सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 2024 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ सभी विपक्षी दलों के संभावित प्रधानमंत्री पद के दावेदार स्पष्ट रूप से हार रहे हैं वहीं अरविंद केजरीवाल राहुल गांधी की तुलना में थोड़ा अधिक स्कोर करते नजर आ रहे हैं यह स्थिति तब है जब कांग्रेस के करीब 17% मतदाता पूरे भारत में मौजूद है और ये सर्वे रिपोर्ट ऐसे समय में आया है जब आम सहमति है कि राहुल की भारत जोड़े यात्रा ने उनकी छवि को ठीक किया है बात करें राहुल गाँधी की छवि की तो भाजपा के प्रचार तंत्र ने राहुल गांधी की छवि को पप्पू वाली बनाई थी जिसे कांग्रेश और राहुल गांधी ने अब ईमानदारी और अद्भुत शारीरिक सहनशक्ति वाले व्यक्ति के छवि से बदल दिया है लंबी दाढ़ी और एक टी-शर्ट के साथ राहुल गांधी कड़ाके की ठंड में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान रोज 20 किलोमीटर चल रहे थे साथ ही उन्होंने अपने साथ मार्च करने वालों को गले लगाकर कई नए प्रशंसक बना लिए हैं हालांकि आलोचकों का मानना है कि राहुल की छवि में बदलाव से अब तक कोई ठोस चुनावी लाभ नहीं हुआ है राहुल गांधी हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में गायब थे या एकमात्र राज है जिसे हाल में पार्टी नहीं जीता है नए सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत जोड़ो यात्रा ने भाजपा के कोर वोट बैंक में सेंध नहीं लगा पाई है.
2004 से 2024 के हालात अलग
कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में 2004 के फॉर्मूले पर विपक्षी एकता बनाने की कवायद जरूर कर रही है, लेकिन इसकी राह आसान नहीं है बीस साल में देश की सियासत काफी बदल गए हैं. कांग्रेस 2004 की तरह मजबूत नहीं है तो उस समय साथ रहे कई क्षेत्रीय दल भी साथ छोड़ चुके हैं. 2004 में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली एलजेपी अब बीजेपी के साथ है तो लेफ्ट पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में काफी कमजोर स्थिति में है. यूपी में बसपा और सपा की स्थिति भी बहुत बेहतर नहीं है. तेलंगाना की टीआरएस भी कांग्रेस के खिलाफ है.

बीजेपी ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मंत्र पर धीरे-धीरे अपना मजबूत वोट बैंक बना लिया है. मतदाताओं पर बीजेपी की पकड़ को इस बात से भी आंका जा सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में यूपी जैसे राज्य में मजबूत विरोधी गठबंधनों के बावजूद वह आगे निकल गई. बीजेपी के खिलाफ यूपी में बसपा-सपा-आरएलडी, कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस, झारखंड में कांग्रेस ने जेएमएम-जेवीएम, बिहार में कांग्रेस-आरजेडी साथ आए थे. फिर भी बीजेपी 2019 में 2014 के लोकसभा चुनाव से भी बड़ी जीत हासिल कर ली थी.

कांग्रेस की स्थिति देश के तमाम राज्यों में काफी कमजोर हुई, जिसके चलते क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ खड़े होने से परहेज कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से लेकर टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, तेलंगाना के सीएम केसीआर की पार्टी बीआरएस जैसे दल कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता बनाना चाहते हैं
इतना ही नहीं ये तीनों ही नेता विपक्षा का चेहरा 2024 के चुनाव में बनना चाहते हैं. इसके अलावा बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार और एनसीपी प्रमुख शरद पवार कांग्रेस के साथ विपक्षी एकता बनाने की बात कर रहे हैं, लेकिन पीएम के चेहरे पर तस्वीर साफ नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए विपक्षी एकता की अगुवाई करना आसान नजर नहीं है और सहयोगी दलों को अपनी शर्तों पर रजामंद करना मुश्किल लग रहा है.

अगर बात करें विपक्ष की रणनीति की तो
विपक्ष की रणनीति अब कहीं से झुकने की नहीं है। विपक्ष का मानना है कि अगर सामूहिक दबाव बनाया गया तो वह पूरे मुद्दे को अपने पक्ष में मोड़ सकते हैं। विपक्षी दलों का यह भी मानना है कि बाकी मसले पर वह अलग-अलग होकर लड़ सकते हैं लेकिन यहां उन्हें एक होना होगा। और वे हुए भी। कानूनी प्रक्रिया से लेकर सियासी जंग तक वे अब एक हो रहे हैं।

विपक्षी दलों का मानना है कि शुरू में जरूर कुछ कार्रवाई उनके लिए सियासी नुकसान देने वाली हुई। लेकिन अब जिस तरह ED और CBI एजंसी का दुरूपयोग करके एकतरफा कार्रवाई हो रही है, उससे लोगों के बीच उनके पक्ष में माहौल बन रहा है। अब ऐसी कार्रवाई में करप्शन के खिलाफ नहीं बल्कि सियासी प्रहार और पद का दुरुपयोग अधिक दिखता है जिसका लाभ उन्हें चुनाव में मिलेगा। इसलिए अब वे आगे इस मसले पर झुकने या समझौता करने के बजाय सड़क पर लड़ने का संकेत दे रहे हैं। जाहिर है करप्शन पर दबाव बनाने का विपक्षी माइंड गेम चलता रहेगा और ख़ास बात ये भी है की पीएम नरेंद्र मोदी भी किसी तरह झुकने के मूड में नहीं हैं।