नई दिल्ली : आज 29 जून को देश भर में ईद-उल-अजहा का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है इसे बकरीद भी कहा जाता है आज के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा करके बकरे की कुर्बानी देते हैं इसके साथ ही बकरे के गोश्त को 3 जगहों पर बांटा जाता है. पहले भाग रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए होता है, वहीं दूसरा हिस्सा गरीब, जरूरतमंदों को दिया जाता है जबकि तीसरा परिवार के लिए होता है।
दिल्ली के जामा मस्जिद समेत देश के अन्य मस्जिदों में ईद-उल-अजहा(बकरीद) की नमाज अदा की गई। ईद-उल-अजहा के मौके पर मुंबई की माहिम दरगाह में भी लोगों ने नमाज अदा की। इस दौरान देश के हर जिला प्रशासन की तरफ से सुरक्षा और सुविधा को लेकर पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
आपको बता दें कि नमाज अदा करने के बाद मुस्लिम समाज के लोग कुर्बानी की परंपरा का निर्वहन भी करतें । इसको देखते हुए उत्तर प्रदेश के हर नगर निगम ने अपील की है कि एक निश्चित स्थान पर ही कुर्बानी दे। साथ ही कुर्बानी के बाद जानवरों के अवशेषों को डंप करने के पुख्ता इंतजाम नगर निगम द्वारा किए गए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर देशवासियों को ईद-उल-अजहा की बधाई दी है. उन्होंने सभी को मुबारकबाद देते हुए इस मौके पर सुख और समृद्धि के साथ समाज में एकजुटता और सद्भाव की कामना की.
प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर लिखा, ईद-उल-अज़हा की शुभकामनाएं. यह दिन सभी के लिए सुख और समृद्धि लाए. यह हमारे समाज में एकजुटता और सद्भाव की भावना को भी कायम रखे. ईद मुबारक!
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लिखा, ईद मुबारक! यह शुभ अवसर सभी के लिए शांति, समृद्धि और खुशहाली लाए.
जानिए आखिर क्यों मनाई जाती है बकरीद और बकरे की कुर्बानी देने के पीछे क्या कारण है.
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, 12वें महीने जु-अल-हिज्जा की 10 तारीख को बकरीद मनाई जाती है। यह तारीख रमजान के पवित्र महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद आती है।
ऐसी मान्यता है कि हजरत इब्राहिम को ख्वाब में अल्लाह का हुकुम आया कि अपने बेटे को कुर्बान कर दें। अल्लाह के हुक्म की तालीम करते हुए हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे को कुर्बान करने की ठानी, कहा जाता है कि कुर्बानी देते वक्त छुरी के नीचे एक मेमना आ गया और हजरत की कुर्बानी पूरी हुई। इस तरह अल्लाह ने इब्राहिम की कुर्बानी को कुबूल कर लिया। तभी से इस त्यौहार को मनाने की परंपरा शुरू हो गई। त्यौहार के 1 माह पहले से ही बाजारों में रौनक बढ़ जाती है। लोग मुंह मांगी कीमत पर बकरों को खरीद कर अपने घर ले जाते हैं और उन्हें कोई ना कोई नाम देते हैं। बड़े लाड प्यार से अपनी संतान की तरह पालते हैं और ईद उल अजहा वाले दिन अल्लाह के हुक्म की तमिल करते हुए उसकी कुर्बानी दे दी जाती है।