कल आने वाले है दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे, जानिए- पार्षद और एमसीडी के पास आने वाले कितने अधिकार?

06 Dec, 2022
Deepa Rawat
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एमसीडी को 1958 में स्थापित किया गया था। स्वायत्त निकाय का गठन शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को नागरिक सेवाएं प्रदान करने के लिए किया गया था। 50 से अधिक वर्षों के बाद, इसे 2012 में तीन निगमों में बांटा गया था।

नई दिल्ली: कल यानि 7 दिसंबर को दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे आने वाले हैं। गौरतलब है कि 4 दिसंबर को दिल्ली में एमसीडी के चुनाव हुए थे। कुल 250 सीटों के लिए वोट डाले गए थे। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप), बीजेपी और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला था। चुनाव में कुल 1,349 उम्मीदवार मैदान में हैं। राज्य निर्वाचन आयोग के बताए गए आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में मतदाताओं की कुल संख्या 1,45,05,358 है, जिसमें 78,93,418 पुरुष, 66,10,879 महिलाएं और 1,061 ट्रांसजेंडर हैं। परिसीमन की कवायद और उत्तर, दक्षिण और पूर्वी दिल्ली नगर निगमों को मिलाकर एकीकृत एमसीडी बनाने के बाद यह पहला चुनाव था।

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एमसीडी कब स्थापित हुआ था ?

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एमसीडी को 1958 में स्थापित किया गया था। स्वायत्त निकाय का गठन शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को नागरिक सेवाएं प्रदान करने के लिए किया गया था। 50 से अधिक वर्षों के बाद, इसे 2012 में तीन निगमों में बांटा गया था। उस वक्त की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल के दौरान इसे तीन हिस्सों- उत्तर, दक्षिण और पूर्वी दिल्ली नगर निगमों में विभाजित कर दिया गया था। हालांकि, इस साल फिर से तीनों को एक साथ कर दिया गया।

पहले थे 272 वार्ड, अब हो गए 250

इस बार एमसीडी के कुछ वार्डों का आकार बदल दिया गया है ताकि उनकी संख्या 272 से 250 तक लाई जा सके। आयोग ने 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 22 के भूगोल को बदल दिया, प्रत्येक में एक वार्ड कम कर दिया गया। शेष 48 को छुआ नहीं गया था। अधिक संख्या में वार्डों वाले विधानसभा क्षेत्रों को मूल रूप से आकार के मामले में समानता प्राप्त करने के लिए चुना गया। पहले उत्तरी और दक्षिण नगर निगम 104-104 पार्षद सीटों की संख्या थीं। वहीं, पूर्वी दिल्ली में 64 सीटें थीं, लेकिन परिसीमन के बाद सीटों की संख्या घट गई है। दिल्ली कैंट और दिल्ली विधानसभा एमसीडी से बाहर हैं, इसलिए इन दोनों सीटों पर नगर निगम के चुनाव नहीं होंगे। 

पार्षद ही बनता है मेयर

एकीकृत होने के बाद दिल्ली नगर निगम के पार्षदों ही एक पार्षद सिर्फ का मेयर चुना जाएगा, बल्कि इनके साथ ही नगर निगम की स्टेडिंग कमिटी एजुकेशन, वर्क्स गार्डन, रूरल एरिया, सैनिटेशन आदि कमिटियों के अध्यक्ष भी निगम पार्षद ही बनाए जाते हैं। इसके अलावा हर जोन में एक कमिटी होती है। जनल कमिटिया ही अपने क्षेत्र में होने वाले कामकाज की निगरानी करते हैं और इसके में होने वाले कार्य के लिए भी प्रस्ताव तैयार करती है। 

पार्षद के अधिकार

पार्षद, विधायक और सांसद की ताकत की, तो सबके पास ताकत और जिम्मेदारी लगभग एक ही है, बस स्तर बढ़ जाता है। मसलन, पार्षद अपने इलाके या वार्ड की जिम्मेदारी लगभग एक ही है, बस स्तर बढ़ जाता है। मसलन, पार्षद के पास अपने इलाके या वार्ड की जिम्मेदारी है, तो विधायक के पास अपने क्षेत्र या विधानसभा की जबकि सांसद भी अपने संसदीय क्षेत्र से जुड़े विकास के लिए जिम्मेदार है। हालांकि दिल्ली में तीनों नगर निगमों के एक होने से मेयर की ताकत मुख्यमंत्री के बराबर ही हो गई है। पहले तीन मेयर होते थे और इस वजह से मुख्यमंत्री ज्यादा ताकतवर होता था। माना जाता है कि शीला दीक्षित की सरकार ने नगर निगम को तीन हिस्सों में बांटा दिया था।

गरीबों को पेंशन देने का अधिकार

निगम पार्षदों को अपने इलाके में एक निर्धारित संख्या में रहने वाले गरीब लोगों को पेंशन देने की सिफारिश करने का अधिकार होता है। किसी विधवा की बेटी की शादी के लिए भी 25 हजार रुपये नगर निगम से देने के लिए पार्षद सिफारिश करते हैं। अगर गलियों में सफाई नहीं हो रही या निगम स्कूलों, डिस्पेंसरी में पर्याप्त सुविधा नहीं मिल उस स्थिति में पार्षद उस मामले को सदन में उठा सकते हैं। निगम की स्कूलों में बनने वाली कमिटियों की अध्यक्षता में पार्षद ही करते हैं।

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नगर निगम का विभाजन होने से पहले तो दिल्ली के मेयर का ही ये अधिकार था कि जब भी किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष दिल्ली आता था तो एयरपोर्ट पर उसका स्वागत सबसे पहले मेयर ही करते थे। अब फिर से नगर निगम के एक होने के बाद उम्मीद है कि फिर से मेयर को ये अधिकार मिलेगा।

भत्ते के रूप में मिलते हैं सिर्फ 300 रुपये

महत्वपूर्ण ये है कि चुनाव में भारी भरकम रकम खर्च करके चुनाव जीतने वाले पार्षदों को भत्ते के नाम पर बेहद मामूली राशि दी जाती है। उन्हें हर बैठक के लिए मात्र तीन सौ रुपये का भत्ता मिलता है। इसके अलावा उन्हें न तो कोई वेतन मिलता है और न ही पेंशन।

हर साल 1 करोड़ का फंड

पूरे दिल्ली स्तर पर नगर निगम के पार्षद ही मिलकर हाउस में नीति तैयार करते हैं, जिसके आधार पर निगम आयुक्त और अन्य अधिकारी कामकाज करते हैं। नगर निगम के हर पार्षद को सालाना एक करोड़ रुपये का फंड मिलता है यानी पांच वर्ष में पांच करोड़ रुपये। इस राशि से पार्षद अपने इलाके में कुछ भी विकास कार्य करा सकते हैं। इसके अलावा सामान्य स्थिति में वह नगर निगम को अपने इलाक की बड़ी परियोजनाओं के लिए प्रस्ताव भी भेज सकते है।

पार्षद, विधायक और सांसदों को नगर निगम में कार्य करने के लिए कितना फंड मिलता है?

पार्षद, विधायकों और सांसदों को अपने-अपने इलाके या क्षेत्र में विकास कार्य के लिए फंड दिया जाता है। दिल्ली में पार्षदों को सालाना 1 करोड़ रुपये का फंड मिलता है। वहीं, दिल्ली के सभी 70 विधायकों को 10-10 करोड़ रुपये का फंड हर साल मिलता है। जबकि, सांसदों को 5-5 करोड़ रुपये की सांसद निधि मिलती है।

दिल्ली नगर निगम के पास कौन-कौन से अधिकार हैं?

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सफाई व्यवस्था: दिल्ली की कॉलोनियों और सड़कों पर सफाई करने, कूड़ा एकत्र करके उसका निस्तारण करने की जिम्मेदारी निगम की है। घरों से कूड़ा एकत्र करके धलाव तक ले जाना और फिर निस्तारण की व्यवस्था करने का कार्य निगम का ही होता है।

स्कूल, अस्पताल, डिस्पेंसरी: निगम के प्राइमरी शिक्षा के लिए स्कूल भी हैं, हेल्थ के लिए डिस्पेंसरी और अस्पताल भी हैं। अस्पतालों की संख्या सीमित है, लेकिन इनकी भी अहम भूमिका है। कुछ जगह निगम के प्राइमरी हेल्प सेंट भी हैं।

सड़कों का रखरखाव: शीला दीक्षित के कार्यकाल के दौरान दिल्ली सरकार ने 60 मीटर से बड़ी सड़कों के रखरखाव की जिम्मेदारी नगर निगम से लेकर पीडब्ल्यूडीको दे दी थी। इसके बावजूद भी अभी नगर निगम के पास 32 हजार किलोमीटर से अधिक छोटी सड़कें, गलियां हैं। इसके अलावा हजारों की संख्या में पार्क हैं, जिनकी देखभाल नगर निगम करता है।

टैक्स वसूलना: दिल्ली में 45 से 50 लाख संपत्तियां हैं। इन सभी संपत्तियों का टैक्स भी नगर निगम ही वसूलता है। इनमें खाली प्लॉट. मकान, दुकानें, कमर्शियल बिल्डिंग आदि शामिल हैं। इसी से निगम की सड़कों और बिल्डिगों पर लगने वाले विज्ञापन, टोल टैक्स और पार्किंग के जरिए भी नगर निगम ही पैसे की वसूली करता है।

तीनों पार्टी से कितने उम्मीदवार मैदान में उतरे थे?

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इन 250 वार्ड के लिए 2,021 उम्मीदवार मैदान में हैं। यानी, औसत निकाल जाए तो हर वार्ड पर 8 उम्मीदवार। सबसे ज्यादा 507 उम्मीदवार निर्दलीय हैं। आम आदमी पार्टी की ओर से 492 उम्मीदवारों ने पर्चा भरा है। बीजेपी की तरफ से 423, कांग्रेस से 332, बहुजन समाज पार पार्टी से 149, जनता दल (यूनाइटेड) से 31, एमआईएम से 20 और सीपीआई (एम) से 9 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया है। इससे पहले 2020 के विधानसभा चुनावों 2020 के विधानसभा चुनावों में 70 सीटों पर 672 उम्मीदवार थे और 2019 में 7 लोकसभा सीटों के लिए 147 उम्मीदवार मैदान में थे। लेकिन एमसीडी चुनाव के लिए दो लेकिन ऐसा क्या है कि दिल्ली में नगर निगम चुनाव के लिए इतने उम्मीदवार उतर गए हैं? जबकि, जीतना सिर्फ 250 को ही। इन्हीं 250 पार्षदों में से एक मेयर चुना जाएगा।

Edit By Deshhit News

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