ट्रेड यूनियन की 28-29 मार्च को देशव्यापी हड़ताल, क्यों कर रहें केंद्र की योजनाओं का विरोध ?

23 Mar, 2022
Deepa Rawat
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ट्रेड यूनियन के कर्मचारी 28-29 मार्च को हड़ताल पर रहेंगे, उनका कहना है कि केंद्र सरकार की योजनाएँ हर क्षेत्र को निजीकरण करना है, ये योजनाएँ राष्ट्र विरोधी और जनविरोधी हैं

नई दिल्ली: ट्रेड यूनियन के कर्मचारी 28-29 मार्च को हड़ताल पर रहेंगे, उनका कहना है कि केंद्र सरकार की योजनाएँ हर क्षेत्र को निजीकरण करना है, ये योजनायें राष्ट्र विरोधी और जनविरोधी हैं इसलिए हम लोगों से भी आव्हान करते है कि वह भी इस हड़ताल में हिस्सा लें और इसको सफल बनाएँ.

ट्रेड यूनियन 28-29 तारीख को करेगी विरोध

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दिल्ली में सेंट्रल ट्रेड यूनियनों की बैठक हुई जिसमें हड़ताल की तैयारियों का जाएजा लिया गया. बैठक में बताया गया कि संयुक्त राज्य स्तरीय सम्मेलनों, सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ कॉर्पोरेट क्षेत्र और असंगठित क्षेत्रों जैसे योजना श्रमिक, घरेलू कामगार, हॉकर, बीड़ी श्रमिक, निर्माण श्रमिक आदि सम्मेलनों के साथ हड़ताल की तैयारी जोरों पर है. हरियाणा और चंडीगढ़ में एस्मा लगाये जाने के खतरे के बावजूद रोडवेज ट्रांसपोर्ट वर्कर्स और बिजली कर्मचारियों ने हड़ताल में शामिल होने का फैसला किया है.

ट्रेड यूनियन की मांग है कि न्यूनतम वेतन 26 हजार हो, समान संहिता लागू, महंगाई पर रोक, डीजल-पेट्रोल के दाम घटाने, बिजली संशोधन बिल 2021 को बंद करने के साथ-साथ रेलवे, बैंक, बीमा, रक्षा क्षेत्र के निजीकरण को रोके जाने, आशा बहुओं, आंगनवाड़ी, मिड डे मील, सभी स्कीमों में काम करने वालों का न्यूनतम वेतन तय करने, ठेका प्रथा और आउटसोर्सिंग पर रोक लगाने समेत अन्य मांग शामिल हैं.

रेलवे के मजदूर विरोध करते हुए

ट्रेड यूनियनों की बैठक में इस इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया गया कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के परिणामों से उत्साहित होकर, केंद्र सरकार ने नौकरी करने वाले लोगों के हितों के खिलाफ फैसले लेने शुरू कर दिए हैं. जिसमें ईपीएफ ब्याज दर को 8.5 प्रतिशत से घटाकर 8.1% कर दिया गया है, पेट्रोल, एलपीजी, मिट्टी का तेल, सीएनजी के दामों में अचानक बढ़ोतरी कर दी गई है.

मजदूर कानूनों को बहाल करना

श्रमिक संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार ने कोरोना काल में 29 श्रमिक कानूनों को समाप्त कर दिया है. इन कानूनों के खत्म कर देने के चलते श्रमिकों और कर्मचारियों का शोषण हो रहा है. उनकी मांग है कि इन सभी कानूनों को फिर से लागू किया जाए. ताकि मजदूरों के अधिकारों को संरक्षण मिले, सरकार ने श्रमिकों कानूनों को अपने हिसाब से संशोधन कर श्रमिकों और कर्मचारियों से 8 घंटे की जगह 12 से 16 घंटे काम लिया जा रहा है जो कि आमानवीय है.

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