मां शैलपुत्री बहुत ही सरल और शांत हैं, उनकी पूजा नवरात्र के पहले दिन होती है, उन्हें पर्वत-हिमालय का आशीर्वाद प्राप्त है, कहा ये भी जाता है कि इन नवरात्रों में जो कुंवारी लड़कियां इन व्रतों को रखती है तो उनकी मनुकामनाएँ पूरी होती हैं
नई दिल्ली: देवी अंबा नवरात्रि उत्सव का प्रतिनिधित्व करती है. वसंत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है. इन दो समय के बीच में मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर ममाना जाता है. अगर त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं. तो नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है.
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माँ दुर्गा नवरात्रि की पूजा वैदिक युग से पहले की चली आ रही है. वैदिक युग के बाद, नवरात्रि की भक्ति प्रथाओं में मुख्य रूप गायत्री साधना का है. नवरात्रि में देवी के शक्तिपीठ और सिद्धपीठों के दौरान बहुत बड़े मेले लगते हैं और माता के सभी शक्तिपीठों का बहुत महत्व है. लेकिन जब हम माँ को गहराई से समझे तो, माता का स्वरूप एक ही है. लेकिन जब हम भारत के अलग-अलग हिस्सों में देवियों की पूजा देखें तो, जम्मू कटरा में वैष्णो देवी बन जाती है, तो कहीं पर चामुंडा रूप में पूजी जाती है. वहीं हिमाचल प्रदेश मे नैना देवी और सहारनपुर में शाकुंभरी देवी के नाम से माता के बहुत बड़े मेले लगते हैं. लोक परमम्परा की मान्यताओं के मुताबिक़ लोगों का मानना है कि नवरात्री के दिन व्रत करने से माता प्रसन्न होती है, वैसे हम जब हिन्दू ग्रंथो की ओर देखते है तो वहां पर व्रत का प्रावधान नहीं है.
नवरात्रों के पहला व्रत और मां शैलपुत्री
आज यानी 2 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि का प्रथम व्रत है. आपको बताते चलें कि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि या बसंत नवरात्रि शुरु होती है और साथ ही आज के दिन जब कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करते हैं. मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री थीं. सफेद वस्त्र धारण किए मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल शोभायमान होता है. मां के माथे पर चंद्रमा लगा होता है. यह नंदी बैल पर सवार होकर संपूर्ण हिमालय पर विराजमान होती हैं. शैलपुत्री मां को वृषोरूढ़ा और उमा के नामों से भी जाना जाता है. देवी के इस रूप को करुणा और स्नेह का प्रतीक माना गया है. घोर तपस्या करने वाली मां शैलपुत्री सभी जीव-जंतुओं की रक्षक मानी जाती हैं.
मां शैलपुत्री का महत्त्व
मां शैलपुत्री बहुत ही सरल और शांत हैं, उनकी पूजा नवरात्र के पहले दिन ही होती है, उन्हें पर्वत-हिमालय का आशीर्वाद प्राप्त है, कहा ये भी जाता है कि इन नवरात्रों में जो कुंवारी लड़कियां इन व्रतों को रखती है तो उनकी मनुकामनाएँ पूरी हो जाती हैं और साथ ही जिन लड़कियों की शादी में किसी भी प्रकार का विघ्न होता है तो उनकी शादी भी बहुत जल्दी हो जाती है.
माता शैलपुत्री की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक़ राजा दक्ष ने एक बार अपने घर पर एक बड़े यज्ञ करवाया था. इस यज्ञ में उन्होंने सभी ब्रह्माण्ड के सभी देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों को आमंत्रण दिया था, लेकिन माता पार्वती पति और अपने दामाद भोलेनाथ को आमंत्रित नहीं किया था. माता सती ने भगवान शिव से अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी तो माता पार्वती के आग्रह पर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी.जब माता सती यज्ञ में पहुंची तो उन्होंने देखा कि राजा दक्ष भगवान भोलेनाथ के बारे में अपशब्द कह रहे थे. पति के इस अपमान को होते देख माता पार्वती ने यज्ञ में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए. यह समाचार सुन भगवान शिव ने अपने गणों को भेजकर दक्ष का यज्ञ पूरी तरह से विध्वंस करा दिया. इसके बाद पार्वती ने शैलपुत्री के रूप में अगला जन्म पर्वतराज हिमालय के घर लिया. तभी से इनको मां शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है, मां शैलपुत्री, मां पार्वती का दूसरा रूप है, वैसे अगर पौराणिक कथाओं को पढ़ा जाए तो सभी देवियाँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, ये जुड़ाव ही 9 देवियों ने लिया, हर एक देवी का अपना महत्त्व है और इन्हीं महत्त्व को देखते हुए इन्हें एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है. जिसे हम नवरात्रों के रूप में मनाते हैं.