अक्षय तृतीया 2022: अक्षय तृतीया का पर्व वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को उत्सव की तरह मनाया जाता है। अक्षय का मतलब है जिसका कभी क्षय ना हो यानी जो कभी नष्ट ना हो। मान्यता है कि इस तिथि पर सतयुग की शुरुआत हुई थी। इसलिए इस दिन को लोग कोई नया काम शुरू करने के लिए बेहद शुभ मानते हैं। इस दिन चारों धाम के पट खुलते हैं। यज्ञ और उपवास के अच्छे नतीजे मिलते हैं। इन सब के अलावा ये दिन इसलिए भी खास है कि इस दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है।
शास्त्रों के अनुसार,परशुराम का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है। परशु का मतलब है कुल्हाड़ी और राम, अर्थात कुल्हाड़ी के साथ राम। जैसे राम भगवान विष्णु के अवतार है, वैसे ही परशुराम भी भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हीं की तरह ही शक्तिशाली भी हैं। परशुराम को अनेक नामों जैसे रामभद्र, भृगुपति, भृगुवंशी आदि से जाना जाता है।
हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान परशुराम ने ब्राह्मणों और ऋषियों पर होने वाले अत्याचारों का अंत करने के लिए जन्म लिया था। कहते हैं कि परशुराम जयंती के दिन पूजा-पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि जिन लोगों की संतान नहीं होती है उन लोगों के लिए ये व्रत फलदायी होता है। साथ ही भक्तों को भगवान परशुराम के साथ विष्णु जी का आशीर्वाद भी मिलता है।
अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त : इस वर्ष ये पर्व 3 मई मंगलवार को मनाया जाएगा। जिसका आरंभ: 3 मई 2022, मंगलवार सुबह 05 बजकर 19 मिनट से शुरू होगा वहीं इसका समापन 4 मई 2022, बुधवार सुबह 07: 35 बजे तक हो जाएगा।
अक्षय तृतीया की पूजा विधि :
अक्षय तृतीया के दिन विधि विधान से पूजा-पाठ और हवन इत्यादि करने से व्यक्ति को अत्यधिक सुखद परिणाम की प्राप्ति होती है। इस तिथि को जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं उनका फल अनेकों गुना अधिक मिलता है। इसी कारण इस दिन बिना पंचांग देखे भी तमाम शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश किए जा सकते हैं।अक्षय तृतीया सर्वसिद्ध मुहूर्तों में से एक मुहूर्त है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की उपासना करते हैं। इस तिथि को स्त्रियां अपने और परिवार की समृद्धि के लिए व्रत कर पूजा अर्चना करती हैं।भगवान विष्णु की आस्था रखने वाले लोग इस दिन उपवास रखकर उन्हें प्रसन्न कर विधि विधान से उनकी आराधना कर अपने मनचाहे फल की कामना करते हैं।
अक्षय तृतीया के दिन कई लोग व्रत रखते हैं। इस दिन प्रात:काल में उठकर स्नान आदि करने के बाद पीले रंग के वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगा जल से स्नान कराएं। इसके बाद तांबे के बर्तन में जल लेकर पूर्व दिशा की ओर अपना मुख करके भगवान सूर्य को जल अर्पित करें। अब घर के मंदिर पर भगवान विष्णु की प्रतिमा को एक चौकी पर स्थापित करें और उनकी प्रतिमा को गंगाजल से साफ करें। फिर उन्हें चंदन या कुमकुम से तिलक करें। भगवान की प्रतिमा पर पीले रंग के फूल चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं। अब धूप दीप जलाकर भगवान विष्णु की आरती उतारें।
इस दिन भगवान विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से विष्णु जी और मां लक्ष्मी की भक्तों को विशेष कृपा की प्राप्ति होती है। रुद्राक्ष की माला से 108 बार “ऊँ नमो भाग्य लक्ष्म्यै च विद्महे अष्ट लक्ष्म्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्” जाप करें। अक्षय तृतीया के दिन ऐसा करना विशेष फलदायी माना जाता है।
अक्षय तृतीया व्रत कथा :
एक समय की बात है जब एक धर्मदास नाम का शिष्टाचारी व्यक्ति हुआ करता था, जिसकी धर्म-कर्म में काफी आस्था थी। वह स्वभाव से दानी था लेकिन गरीब होने के कारण उसे हमेशा अपने परिवार के भरण-पोषण की चिंता रहती थी। एक दिन किसी ने उसे अक्षय तृतीया के व्रत और इसके महत्व के बारे में बताया।
धर्म में अपने अटूट विश्वास के चलते, धर्मदास ने इस व्रत को करने का निश्चय किया। व्रत की विधि का पालन करते हुए उन्होंने अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर गंगा में स्नान किया और फिर श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की। इसके साथ ही उन्होंने अपनी क्षमता से बढ़कर, जल से भरे घड़े, पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेहूं, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र आदि जैसी वस्तुएं भगवान के चरणों में अर्पित कर ब्राह्मणों को दान कर दी।
यह सब देखकर उनकी पत्नी ने उन्हें रोकने का भी प्रयास किया, क्योंकि उनका परिवार निर्धन था, और इतने दान से उनकी परिस्थिति और भी खराब हो जाती। इसके अलावा, बुढ़ापे के कारण वह कई रोगों से भी पीड़ित थे, लेकिन धर्मदास ने इन सभी बातों की बिना परवाह किए अपना व्रत विधि पूर्वक पूर्ण किया। अनेक प्रकार की परेशानियों का सामना करते हुए वह जीवन भर अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर व्रत व दान-पुण्य करते रहे।
इस पावन व्रत को करने के फलस्वरूप धर्मदास ने अगले जन्म में राजा कुशावती के रूप में जन्म लिया। अपने अच्छे कर्मों की वजह से धर्मदास को राजयोग के साथ वैभव एवं यश की प्राप्ति हुई। उनके राज्य में धन व दौलत समेत किसी भी प्रकार के सुख की कमी नहीं थी। इन सुखों के बाद भी वह कभी लोभी नहीं बने और सदैव सदाचार का पालन करते रहे। उन पर ईश्वर की कृपा बनी रही और उन्हें अक्षय तृतीया के पुण्य की प्राप्ति भी होती रही।
धर्मदास की तरह अक्षय तृतीया की कथा को सच्चे मन से सुनने वालों को धन, वैभव, यश व सुखों की प्राप्ति होती है। लालच को त्याग कर इस दिन दान-पुण्य करने से भगवान की कृपा हमेशा आप पर बनी रहती है।