दलित राजनीती के आन्दोलन को बाबा साहेब अम्बेडकर के बाद कांशीराम ने बढ़ाया आगे, 88 वीं जयंती पर मायावती ने कांशीराम को किया याद

15 Mar, 2022
Deepa Rawat
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kashiramji 88th Jayanti

कांशीराम का जन्म 15 मार्च, 1934 को ब्रिटिश इंडिया के पंजाब के रूपनगर जिले (आज का रोपड़) में हुआ था और उन्होंने 1956 में रोपड़ के शासकीय महाविद्यालय से बीएससी की डिग्री हासिल की थी.

नई दिल्ली: आज दलितों के दूसरे सबसे बड़े नेता बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम जी की आज 88 वीं जयंती मनाई जा रही है. उनका जन्म पंजाब के रोपड़ जिले में 15 मार्च, 1934 को ब्रिटिश इंडिया के पंजाब के रूपनगर जिले (आज का रोपड़) में हुआ था उनकी प्राथमिक शिक्षा रोपड़ के स्कूल में हुई उसके हाई स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा भी रोपड़ में हुई थी उन्होंने 1956 में रोपड़ के शासकीय महाविद्यालय से बीएससी की डिग्री हासिल की थी. इसके बाद पुणे की गोला बारूद फैक्ट्री में क्लास वन अधिकारी के तौर पर नियुक्त हो गए थे. जल्दी ही उन्हें प्रशासन में जातिगत आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ा. एक बार डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती पर छुट्टी की मांग करने वाले एक दलित कर्मचारी के साथ भेदभाव हर तो तब से कांशीराम ने दलितों के लिए संघर्ष करने लगें.

शुरूआती राजनितिक संघर्ष

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कांशीराम डॉ. अम्बेडकर से काफी ज्यादा प्रभावित थे उन्होंने डॉ. अम्बेडकर की सबसे प्रसिद्ध बुक “एनहीलेशन ऑफ कास्ट” को पढ़कर काफी प्रेरणा ली थी अपने सघर्ष को आगे बढ़ाया, कांशीराम जिस फैक्ट्री में अधिकारीं हुआ करते थे उसमें जब उन्हें जातिवाद का सामना करना पड़ा तो उन्होंने उसका विरोध किया जिसके कारण उन्हें वहां से सस्पेंड कर दिया गया. इसी जातिवादी मानसिकता के खिलाफ  कांशीराम जी ने जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किए और उसके बाद उन्होंने “बामसेफ” संगठन की स्थापना की लेकिन ये संगठन न राजीतिक और न ही धार्मिक संगठन था लेकिन दलित समाज में जागरूकता के लिए इसको स्थापित किया गया था और जिन पर शोषण हो रहा था उस वक़्त ये संगठन उनकी मदद करता था.

बामसेफ संगठन की स्थापना मान्यवर कांशीराम ने वर्ष 1971 में की थी

इसके बाद उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया और फिर वह यूपी आये और उन्होंने 1984 में बहुजन समाज पार्टी  पार्टी की स्थापना इसे शुरुआत में तो विफलता मिली थी क्योंकि उस समय इंदिरा की लहर हुआ करती थी जिसके कारण यूपी में बीएसपी कोई सीट नहीं जीत पाई थी लेकिन कांशीराम का काफिला यही नहीं रुका उन्होंने अलग-अलग जातियों को जोड़ना चालू किया और अपनी हार को भूलकर उन्होंने जमीनी स्तर पर काम करना चालू किया. यूपी की जमीन तलाशने के लिए वह यूपी का भ्रमण कर रहे थे तभी उनकी मुलाकात आईएएस की तयारी कर रही मायावती से हुई जहाँ उन्होंने राजनीती में आने का न्यौता दिया फिर क्या था मायावती राजनीती में आई और शुरूआती समय में उन्हें हार मिली लेकिन 1989 के लोकसभा चुनाव में वह पहली बार लोकसभा सांसद बन कर आई थी.

बीएसपी की स्थापना के बाद जमीनी संघर्ष के दौरान कांशीराम जी

ये राजनीतिक सफ़र उनका रुका नहीं बल्कि उन्होंने अपने कड़े संघर्ष के माध्यम से आगे बढ़ाया और वह इस पार्टी को पूरे देश में ले जाना चाहते थे और उन्होंने ऐसा किया भी वह पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश की राजनीति में चुनाव लड़े लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. लेकिन अब भारतीय राजनीति में वर्ष 1992 में ऐसा मोड़ आया जब कांशीराम, मुलायम सिंह से मिले यह पहला मौका था जब सपा और बसपा एक मंच पर आये थी यहीं वो समय भी था जब बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ था उस समय एक नारा लगा था जो बाद में भारतीय राजनीति का चेहरा बदलने वाला था वह नारा था ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा उड़ गए जयश्री राम, बाकी राम झूठे राम असली राम कांशीराम’ इस नारे ने यूपी की राजनीति को पलट दिया था. इस नारे से वह एक मंच पर तो आये और मुलायम सिंह ने कांशीराम की मदद की, कहा जाता है कि 1991 के चुनाव में इटावा मे जबरदस्त हिंसा के बाद चुनाव को दुबारा कराया गया था, तब बसपा सुप्रीमो कांशीराम मैदान में उतरे. मुलायम ने वक्त की नब्ज को समझते हुए कांशीराम की मदद की. 1991 में हुए लोकसभा के उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी कांशीराम समेत कुल 48 प्रत्याशी मैदान में थे. चुनाव में कांशीराम को एक लाख 44 हजार 290 मत मिले और भाजपा प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को एक लाख 21 हजार 824 मत मिले. मुलायम सिंह की जनता पार्टी से लड़े रामसिंह शाक्य को मात्र 82624 मत ही मिले थे

कांशीराम और मुलायम सिंह यादव जब एक साथ एक आमचा पर आये थे

एक साक्षात्कार में कांशीराम ने कहा था कि अगर मुलायम सिंह उनके साथ आ जाए तो पार्टी का मिशन और तेजी से आगे बढ़ेगा. इस इंटरव्यू के बाद मुलायम सिंह कांशीराम से दिल्ली उनके घर मिलने आये और कांशीराम ने उनको सलाह दी की तुम सबसे पहले अपनी एक पार्टी बनाओ उसके बाद क्या मुलायम सिंह ने आजम खान के साथ मिलकर समाजवादी पार्टी का गठन किया.

लेकिन बाद में दोनों के बीच में दरार आ गई, इसके बाद वर्ष 1992 में यूपी के विधानसभा चुनाव होते हैं जिसमे बीएसपी को 82 सीट मिलती है जिसके बाद  बीएसपी, बीजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाती है और मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएसपी मायावती को बनाती है शायद समय आजादी के बाद कोई गैर कांग्रेसी महिला दलित नेता मुख्यमंत्री बनी थी.

वर्ष 1993 में पहली बार मायावती मुख्यमंत्री बनी थी

कांशीराम ने वर्ष 1982 में एक किताब लिखी  जिसका नाम “चमचा युग” था वह किताब बहुत चर्चित किताबों में से एक है इसमें कांशीराम जी ने लिखा है कि आज समाज में चाटुकार बहुत हैं जिसको जहाँ पद मिलता है वह वही मुड़ जाता है वह अपने अधिकार और सम्मान को भी नहीं देखता है  बस उसे पदों का लालच है वह चाहे तुम्हारे घरों को उजाड़ कर ही क्यों न मिले, यहीं बात उन्होंने अपने समाज के बारे में भी कहीं थी की वह इन ब्राह्मण के जूतों पर न लेते बल्कि अपनी एक स्वतंत्र लड़ाई लड़े जो हमें बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने सिखाई है उन अधिकार का इस्तमाल करे जो हमें संविधान देता है अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें और राजनीति में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाये साथ ही बीएसपी के मिशन के साथ खड़े हो जाओ.

कांशीराम की लिखी सबसे चर्चित बुक “चमचा युग”

आज कांशीराम जी की 88 वीं जयंती मनाई जा रही है इस अवसर पर उनकी उत्तराधिकारी मायावती ने उनकी मूर्ति पर माल्यापर्ण किया और कहा की कांशीराम ने दलितों और पिछड़ों को फर्श से अर्श पर पहुँचाया है उन्होंने अपने जीवन में बहुत कड़ा संघर्ष किया है उन्होंने जातिवादी मानसिकता से लड़ाई करते हुए भारतीय राजनीति में दलित मूवमेंट को खड़ा किया है हम इस आन्दोलन के लिए हमेशा कांशीराम जी के कर्जदार रहेंगे और मायावती ने आगे कहा कि आज के चमचा युग में खड़ा होना बड़ा बहुत मुश्किल है लेकिन हम फिर भी खड़े है और लड़ रहें है साथी ही बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर और कांशीराम का सपना पूरा करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं.

कांशीराम की 88 वीं पर मायावती ने कांशीराम को याद करते हुए माल्यापर्ण किया

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