नई दिल्ली: इस साल लोहड़ी का त्यौहार शनिवार 14 जनवरी 2023 को मनाया जाएगा। लोहड़ी की पूजा के लिए 14 जनवरी 2023 रात 08:57 का समय शुभ है। लोहड़ी का त्यौहार पंजाबियों तथा हरयानी लोगों का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में धूम धाम तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी की पूजा पवित्र अग्नि के पास की जाती है। लोग घर के बाहर या किसी खुली जगह पर लोहड़ी की पवित्र अग्नि को जलाते हैं और इसमें मूंगफली, गजक, रेवड़ी, तिल, आदि डालकर इसकी परिक्रमा करते हैं। लोहड़ी में नए फसलों की भी पूजा की जाती है और अग्नि में नई फसल को अर्पित किया जाता है। इसके बाद सभी सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। लोहड़ी शब्द में ल का मतलब लकड़ी, ओह से गोहा यानी जलते हुए सूखे उपले और ड़ी का मतलब रेवड़ी से होता है।
क्यों मनाया जाता है लोहड़ी का त्यौहार?

अब्दुल्ला भाटी नाम के एक शख्स थे, जो हमेशा सबकी मदद के लिए तैयार रहते थे। ऐसे ही एक बार उन्होंने एक ब्राह्मण की कन्या को मुगलशासक के चंगुल से छुड़ाया था और उसकी शादी एक सुयोग्य हिन्दू वर से करवाई थी। उस कन्या का नाम सुंदर मुंदरिए था। अब अब्दुल्ला भाटी कोई पंडित तो था नहीं, इसलिए उसने आस-पास पड़ी लकड़ियों और गोबर के उपलों को इकट्ठा करके उसमें आग जलाई और उसके पास जो कुछ खाने की चीजें जैसे- मूंगफली, रेवड़ी आदि थीं, वो सब उसने आग में डाल दी और उन दोनों की शादी करवा दी। इस प्रकार उन दोनों की शादी तो हो गई, लेकिन बाद में मुगल शासकों ने अब्दुल्ला भाटी पर हमला कर दिया और वह मारा गया। तब से अब्दुल्ला भाटी की याद में लोहड़ी का यह त्यौहार मनाया जाता है और शाम के समय लकड़ी और उपले जलाकर उसकी परिक्रमा की जाती है। लोहड़ी के दिन एक-दूसरे को मूंगफली, रेवड़ियां आदि बांटने और खाने का भी रिवाज है।
लोहड़ी की विशेषता

- लोहड़ी का त्यौहार सिख समूह का पावन त्यौहार है और इसे सर्दियों के मौसम में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
- पंजाब प्रांत को छोड़कर भारत के अन्य राज्यों समेत विदेशों में भी सिख समुदाय इस त्यौहार को बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं।
- लोहड़ी का पर्व श्रद्धालुओं के अंदर नई ऊर्जा का विकास करता है और साथ ही में खुशियों की भावना का भी संचार होता है अर्थात् यह त्यौहार प्रमुख त्योहारों में से एक है।

- इस पावन त्यौहार के दिन देश के विभिन्न राज्यों में अवकाश का प्रावधान है और इस दिन को लोग यादगार बनाते हैं।
- इस पर्व के दिन लोग मक्के की रोटी और सरसों का साग बनाकर खाते हैं और यही इस त्यौहार का पारंपरिक व्यंजन है।
- आग जलाकर चारों तरफ लोग बैठते हैं और फिर गजक, मूंगफली, रेवड़ी आदि खाकर इस त्यौहार का आनंद उठाते हैं।
- इस पावन पर्व का नाम लोई के नाम से पड़ा है और यह नाम महान संत कबीर दास की पत्नी जी का था।
- यह त्यौहार नए साल की शुरुआत में और सर्दियों के अंत में मनाया जाता है।
- इस त्यौहार के जरिए सिख समुदाय नए साल का स्वागत करते हैं और पंजाब में इसी कारण इसे और भी उत्साह पूर्ण तरीके से मनाया जाता है।
- किसान भाई बहनों के लिए बियर पावन पर्वत अत्यधिक शुभ होता है और इस पर्व के बीत जाने के बाद नई फसलों का कटाई का काम शुरू किया जाता है।
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