Veer Savarkar Birthday Special: पहली, कालापानी की सजा से मुक्ति पाने के लिए 1911 में उन्होंने खुद ब्रिटिश सरकार के सामने याचिका लगायी थी. इसके बाद वह अंग्रेजी सरकार के माफीनामा पर सशर्त राजी हो गए थे.
नई दिल्ली: (Veer Savarkar Birthday Special) वीर सावरकर (Veer Savarkar) यानि विनायक दामोदर सावरकर केवल हिंदुत्व के हिमायती ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रणेता भी थे. एक ऐसा व्यक्तित्व जिनके प्रशंसक और निंदक समान रूप से हैं. उनके समर्थक उन्हें हिंदू राष्ट्रवाद का शलाका पुरुष मानते हैं, तो विरोधी उन्हें वैचारिक आधार पर सबसे बड़ा विभाजनकर्ता. सावरकर के ‘हिंदुत्व’ की अवधारणा ने ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ की विचार धारा को प्रबल किया. उन्होंने हिंदू जीवन-पद्धति को अन्य पद्धतियों के मुकाबले श्रेष्ठ रूप में प्रस्तुत कर हिंदुत्व को राष्ट्रवाद की भावना से जोड़ा. सावरकर ने भारत में हिंदू राष्ट्रवाद की अवधारणा को पुख्ता कर दक्षिणपंथी राजनीति को एक नई दिशा दी. उनके के द्वारा गढ़ा गया हिंदुत्व आज के दक्षिणापंथी राजनीति का केंद्र बिंदु हैं.
आज भी दक्षिणपंथी राजनीति इसी के इर्द-गिर्द होती हैं.
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चर्चित संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में जब एक सार्वजनिक कार्यक्रम में जब अखंड भारत पर चर्चा की. तो उनके जिक्र करते ही मीडिया,राजनेता और जनता द्वारा तमाम तरह प्रतिक्रियाएं आने लगी. हर कोई अपने-अपने हिसाब से इस शब्द के मायने निकालने लगा. दरसअल हिंदुत्व और अखंड भारत जैसे शब्द कोई नए नहीं हैं. एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में, हिंदुत्व शब्द को वीर सावरकर ने 1923 में ही सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया था. वह इस विषय पर काफी कुछ बोल और लिख चुके हैं. सावरकर का हिंदुत्व में केवल हिंदूओं तक ही नहीं सीमित हैं, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप की भूमि पर रहने वाले सभी धर्म और संप्रदायों को अपने में समेटे हुए हैं.
जीवन परिचय
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सावरकर एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी, कुशल राजनीतिज्ञ, तेजतर्रार वकील और चर्चित लेखक थे. उनका जन्म 28 मई 1830 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर ग्राम में हुआ था. उनकी माता का नाम राधाबाई सावरकर और पिता दामोदर पंत सावरकर थे. 1901 में इनका विवाह यमुनाबाई से हुआ था. उनके तीन संताने हुई-विश्वास सावरकर, प्रभाकर सावरकर और प्रभात चिपलूनकर. 24 फरवरी 1966 को उनकी मृत्यु हुई.
राजनीतिक जीवन
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वीर सावरकर अपनी विचारधारा को लेकर हमेशा स्पष्ट रहें. बचपन से ही क्रांतिकारी विचारधारा के सावरकर के हृदय में राष्ट्र भावना कूट-कूट कर भरी थी. इनकी प्रारंभिक शिक्षा नासिक के शिवाजी स्कूल से हुई. वर्ष में 1902 में स्नातक के लिए पुणे के फर्गुसन कॉलेज में दाखिला लिया. पुणे में उन्होंने अभिनवभारत सोसायटी का गठन किया और बाद में स्वदेशी आंदोलन का भी हिस्सा बने. वर्ष 1906 में बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड गए और वहां पर उन्होनें आजाद भारत सोसाइटी का गठन कर, अपनी राजनीतिक गतिविधि को बढ़ायी. वर्ष 1909 में सावरकर के सहयोगी मदनलाल धींगरा ने वायसराय लार्ड कर्जन की असफल हत्या के प्रयास के बाद सर विएली की गोली मारकर हत्या कर दी. इसी दौरान नासिक के तत्कालीन ब्रिटिश कलेक्टर ए.एम.टी जैक्सन की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस हत्या के आरोप में आरोपी सावरकर को 13 मार्च 1910 को लंदन में कैद कर लिया गया. वहां की अदालत में उन पर गंभीर आरोप लगाते हैं, इन्हें 50 साल की सजा सुनाई. इसके बाद कालापानी की सजा देकर अंडमान के सेल्यूलर जेल भेज दिया गया.
कारावास
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वीर सावरकर 1911 से 1921 अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहने के काफी यातनाएं झेली. इस दौरान दीवारों पर कील और कोयले से कुछ शब्द लिखें और उन्हें याद किया. जेल से छूटने के बाद अपनी इन्हीं शब्दों को कविता के रूप में 10000 पंक्तियों में पिरोया.
सम्मान
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आजादी के बाद 8 अक्टूबर 1951 में उनको पुणे विश्वविद्यालय द्वारा डी.लीट की उपाधि दी गयी. 1970 इनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था.
रचनाएं
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सावरकर की महत्वपूर्ण कृतियां मिजी जनमथेप, अर्क, कमला, हिंदुत्व: हू इज हिन्दू और द हिंदी, इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस आदि हैं. अपने कारावास के दिनों में ट्रांसपोर्टेशन ऑफ माय लाइफ नामक पुस्तक लिखी, जो ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गई.
आरोप और विवाद
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वीर सावरकर का व्यक्तित्व हमेशा ही विवादास्पद रहा. जीवनपर्यंत ही नहीं मृत्यु के बाद भी इन्हें कई विवादों का सामना करना पड़ा. पहली,कालापानी की सजा से मुक्ति पाने के लिए 1911 में उन्होंने खुद ब्रिटिश सरकार के सामने याचिका लगायी थी. इसके बाद वह अंग्रेजी सरकार के माफीनामा पर सशर्त राजी हो गए थे. दूसरी बार इन्हें तब विवादों का सामना करना पड़ा, जब 1949 में गांधी हत्याकांड में 8 लोगों समेत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. वीर सावरकर की छवि को उस समय बहुत ही धूमिल हुई, लेकिन वह बहुत जल्दी इस मामले से बरी हो गए. कुछ दिन पहले हैदराबाद के सालारजंग संग्रहालय में लगी उनकी तस्वीर पर भी काफी विवाद हु आ था. इसी तरह संसद भवन में भी उनके तस्वीर को लगाने को लेकर विवाद हुआ था.
अंत
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वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायणन के पास वीर सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया.