कहा जाता है कि 336 ई.पूर्व में रोम के पहले ईसाई सम्राट के दौर में 25 दिसंबर के दिन सबसे पहले क्रिसमस मनाया गया, जिसके कुछ वर्षों बाद पोप जुलियस ने ऑफिशियली जीसस क्राइस्ट का जन्मदिवस 25 दिसंबर के दिन मनाने का ऐलान कर दिया।
नई दिल्ली: आज से तीन दिन बाद क्रिसमस डे मनाया जाएगा। हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस डे मनाया जाता है। क्रिसमस डे ईसाइयों का प्रमुख त्योहार है, जो खास तौर पर ईसामसीह के जन्म उत्सव के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। जिसे बड़े धूमधाम के साथ भारत ही नहीं बल्कि प्रत्येक देश में मनाया जाता है।
25 दिसंबर को ही क्रिसमस डे क्यों मनाया जाता है?
ईसाइयों का प्रमुख त्योहार क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया जाता है। जो दुनिया में सबसे बड़ा दिन माना जाता है। इस दिन पूरे विश्व की छुट्टी रहती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, 25 दिसंबर को भी जीसस क्राइस्ट का जन्म हुआ था। जिन्हें ईश्वर की संतान माना जाता है। ईसाईयों का मानना है कि इस दिन सूर्य का पुनर्जन्म होता है।
क्रिसमस डे मनाने का इतिहास
क्रिसमस डे मनाने के पीछे भिन्न- भिन्न कहानी बताई गई है। जिसमें – पौराणिक कथाओं के अनुसार, नाजरेथ नामक स्थान पर एक मरियम नाम की महिला निवास किया करती थी। जो स्वभाव में बहुत ही दयालु और मेहनती थी। जो यूसुफ नामक आदमी से प्रेम किया करती थी। एक बार ईश्वर के द्वारा गेब्रियल नामक परी को मरियम के पास भेजा और बताया कि धरती पर एक बहुत ही महान आत्मा जन्म लेने वाली है। जिससे ईश्वर का पुत्र कहा जायेगा और उसका नाम यीशु होगा। जिसके बाद मरिया बहुत ही असमजत में पड़ गयी के उसके अविवाहित होते हुए उससे पुत्र की प्राप्ति कैसे होगी। उस पर परी न मारिया को बताया कि यह ईश्वर का चमत्कार होगा उसने बताया कि उसके चचेरे भाई एलिज़ाबेथ को एक जॉन बैपटिस्ट नाम एक बच्चा होगा। जो आगे चलकर यीशु के जन्म का कारण बनेगा। इसके बाद मारिया की शादी यूसुफ से हो जाती है और दोनों बेथहलम आ गए। जहाँ रहने का स्थान न मिलने के कारण इन्हें जानवरों के खलियान में रहना पड़ा। वहीं यीशु का जन्म हुआ। इस दिन दुनिया मे हर जगह खुशियां मनाई गई, गाने गाए गए। उसी दिन से क्रिसमस डे बनाया जाने लगा।
– वैसे तो ईसाई समुदाय के लोग इसे यीशू मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं, लेकिन साक्ष्य बताते हैं कि इस दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ ही नहीं था। शुरुआत में ईसाई समुदाय के लोग यीशू यानि ईसा मसीह के जन्मदिन को एक त्योहार के रूप में नहीं मनाते थे, लेकिन चौथी शताब्दी के आते-आते उनके जन्मदिन को एक त्यौहार के तौर पर मनाया जाने लगा। हुआ यूं कि यूरोप में गैर ईसाई समुदाय के लोग सूर्य के उत्तरायण के मौके पर एक बड़ा त्योहार मनाते थे। इनमें प्रमुख था, 25 दिसंबर को सूर्य के उत्तरायण होने का त्योहार। इस तारीख से दिन के लंबा होना शुरू होने की वजह से, इसे सूर्य देवता के पुनर्जन्म का दिन माना जाता था। कहा जाता है कि इसी वजह से ईसाई समुदाय के लोगों ने इस दिन को ईशू के जन्मदिन के त्यौहार क्रिसमस के तौर पर चुना। क्रिसमस से पहले ईस्टर ईसाई समुदाय के लोगों का प्रमुख त्यौहार था।
संता निकोलस की कहानी
क्या आपको पता है ? क्रिसमस को खास उसकी परम्पराएं बनाती हैं। इनमें एक संता निकोलस हैं। जिनका जन्म ईसा मसीह की मृत्यु के लगभग 280 साल बाद मायरा में हुआ था। उन्होंने अपना पूरा जीवन यीशू को समर्पित कर दिया। उन्हें लोगों की मदद करना बेहद पसंद था। यही वजह है कि वो यीशू के जन्मदिन के मौके पर रात के अंधेरे में बच्चों को गिफ्ट दिया करते थे। इस वजह से बच्चे आज भी अपने संता का इंतजार करते हैं।
क्रिसमस ट्री का महत्व
–क्रिसमस का दिन प्रेम और सोहार्द का त्यौहार है। इस दिन सभी अपने-अपने घरों में क्रिसमस ट्री को सजाते हैं। जो दिखने में किसी पिरामिड के आकार का होता है। इसका वास्तविक नाम सदाबहार है। यह ब्रिज कभी भी सूखता नहीं है और ना ही इसके पत्ते कभी मुड़ जाते हैं। यही वजह है कि इसे लंबी आयु का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस पेड़ को सजाने से घर के बच्चों की आयु लंबी होती है। कई कथाओं में यह सुनने को भी मिलता है कि जब ईसा मसीह का जन्म हुआ था तो ईश्वर और देवताओं ने अपनी खुशी व्यक्त करने के लिए सदाबहार के वृक्ष लगाए थे। इसीलिए क्रिसमस के दिन हर घर में रंग बिरंगी लाइट और बल्ब को लगाकर क्रिसमस ट्री को तैयार करके क्रिसमस सेलिब्रेट किया जाता है। इस परंपरा को सबसे पहले जर्मनी के द्वारा बीमार बच्चों को खुश करने के लिए किया गया था।
-दूसरी अहम परंपरा क्रिसमस ट्री की यह है कि यीशू के जन्म के मौके पर एक फर के पेड़ को सजाया गया था, जिसे बाद में क्रिसमस ट्री कहा जाने लगा। इसके अलावा एक और परंपरा कार्ड देने की है। इस दिन लोग एक कार्ड के जरिए अपनों को शुभकामनाएं देते हैं। बता दें कि पहला क्रिसमस कार्ड 1842 में विलियम एंगले ने भेजा था।
सबसे पहले कहां और कब मनाया गया क्रिसमस डे?
कहा जाता है कि 336 ई.पूर्व में रोम के पहले ईसाई सम्राट के दौर में 25 दिसंबर के दिन सबसे पहले क्रिसमस मनाया गया, जिसके कुछ वर्षों बाद पोप जुलियस ने ऑफिशियली जीसस क्राइस्ट का जन्मदिवस 25 दिसंबर के दिन मनाने का ऐलान कर दिया। तब से पश्चिमी देशा में क्रिसमस को हॉलिडे मनाया जाने लगा।
कैसे मनाया जाता क्रिसमस का त्यौहार ?
-Christmas Day की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में ऐतिहासिक जड़ें हैं, यह लंबे समय से धर्मनिरपेक्ष तरीके से भी मनाया जाता रहा है।Christmas Day की लोकप्रिय आधुनिक परंपराओं में उपहार देना, आगमन कैलेंडर या आगमन पुष्पांजलि, क्रिसमस संगीत, क्रिसमस कार्ड का आदान-प्रदान, चर्च सेवाएं, एक विशेष भोजन और क्रिसमस के पेड़, क्रिसमस रोशनी सहित विभिन्न क्रिसमस सजावट का प्रदर्शन शामिल है।
-Christmas Day पर क्रिसमस ट्री को रंग-बिरंगे लाइटस और फूलों क्रिसमस ट्री , क्रिसमस लाइट, पुष्पमालाएं, अमरबेल और प्रभु श्री इशु मसीह के जन्म स्थान के फोटो से सजाया जाता है। जिसका पूरा परिवार परिक्रमा करता है। अंत में केक कटिंग करते है और इस त्यौहार को धूमधाम से पूर्ण करते है। वही इन दिनों छुट्टियाँ होने के कारण परिवार मॉल, क्लब्स व होटल्स में जाते है, जहां वे पूरा दिन आनंदमयी तरीके से बिताते है। यह जश्न पूरे 1 जनवरी तक चलता है।
-सभी गिरजाघरों में यीशु मसीह की बहुत ही सुंदर-सुंदर झांकियां सजाई जाती हैं जिन्हें देखने के लिए विदेशों से भी सैलानियों का मेला सा लग जाता है। 24-25 दिसंबर की रात आराधनालयों में मोमबत्तियाँ सजाई जाती है और यीशु की प्रार्थनाएँ की जाती है।
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