राष्ट्रीय मज़दूर दिवस की शुरुआत कब हुई इसके पीछे क्या कारण थें।

01 May, 2024
Head office
Share on :

राष्ट्रीय मज़दूर दिवस: शुरुआत और कारण

शुरुआत:

अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस, जिसे मई दिवस (May Day) भी कहा जाता है, हर साल 1 मई को दुनिया भर में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1886 में अमेरिका में हुई थी।

कारण:

19वीं शताब्दी के अंत में, अमेरिका में कामगारों की स्थिति बहुत खराब थी। उन्हें लंबे समय तक (10-12 घंटे प्रतिदिन) कम वेतन पर काम करना पड़ता था, असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था, और बच्चों का भी शोषण किया जाता था।

1884 में, अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर (AFL) की स्थापना हुई, जो मजदूरों के अधिकारों के लिए लड़ने वाला एक संगठन था। AFL ने आठ घंटे का कार्यदिवस (eight-hour workday) की मांग करने का फैसला किया और 1 मई 1886 को देश भर में हड़ताल का आयोजन किया।

शिकागो में, हड़ताल हिंसक हो गई, जिसमें कई लोग मारे गए। इस घटना को हे मार्केट हत्याकांड (Haymarket Massacre) के नाम से जाना जाता है।

हे मार्केट हत्याकांड के बाद, अंतर्राष्ट्रीय समाज ने मजदूरों की दशा पर ध्यान दिया। 1889 में, दूसरा अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (Second International Socialist Congress) में, 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस (International Labour Day) के रूप में मनाने का फैसला लिया गया।

भारत में, 1923 में मद्रास (अब चेन्नई) में पहली बार मई दिवस मनाया गया था। 1934 में, अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) ने 1 मई को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय मज़दूर दिवस (National Labour Day) घोषित किया।

महत्व:

मज़दूर दिवस मजदूरों के योगदान को सम्मानित करने और उनके अधिकारों के लिए लड़ने का एक अवसर है। यह दिन सामाजिक न्याय और समानता के लिए भी एक प्रतीक है।

निष्कर्ष:

अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस मजदूरों के संघर्ष और उनकी उपलब्धियों का स्मरण दिलाता है। यह दिन हमें मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए और एक बेहतर समाज बनाने के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करता है.
राष्ट्रीय मज़दूर दिवस: ऐतिहासिक संदर्भ, वैश्विक महत्व और समकालीन प्रासंगिकता

परिचय:

प्रत्येक वर्ष 1 मई को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस (International Labour Day) केवल छुट्टी का दिन नहीं है, अपितु यह मजदूर वर्ग के संघर्षों, बलिदानों और उपलब्धियों का स्मरण दिवस है।

ऐतिहासिक संदर्भ:

19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप श्रमिकों की स्थिति दयनीय हो गई थी। अत्यधिक काम के घंटे, असुरक्षित कार्य वातावरण, अल्प वेतन और शोषण श्रमिकों के जीवन का अभिन्न अंग बन गए थे।

शिकागो आंदोलन और हे मार्केट हत्याकांड:

1886 में, अमेरिका में मजदूर संगठनों ने आठ घंटे का कार्यदिवस (eight-hour workday) की मांग को लेकर एक व्यापक हड़ताल का आह्वान किया। शिकागो में, यह हड़ताल 4 मई को हिंसक हो गई, जिसमें कई लोगों की जान चली गई। इस घटना को हे मार्केट हत्याकांड (Haymarket Massacre) के नाम से जाना जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस की स्थापना:

हे मार्केट हत्याकांड के बाद, मजदूर वर्ग की एकजुटता और अधिकारों के प्रति जागरूकता वैश्विक स्तर पर फैलने लगी। 1889 में, पेरिस में आयोजित दूसरे अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (Second International Socialist Congress) में 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस (International Labour Day) के रूप में मनाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।

भारत में मज़दूर दिवस:

भारत में, 1923 में मद्रास (अब चेन्नई) में पहली बार मई दिवस मनाया गया था। 1934 में, अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) ने 1 मई को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय मज़दूर दिवस (National Labour Day) घोषित किया।

वैश्विक महत्व:

अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस केवल छुट्टी का दिन नहीं है, अपितु यह महत्वपूर्ण प्रतीकात्मकता भी रखता है। यह दिन मजदूर वर्ग की शक्ति, संघर्ष और एकजुटता का प्रतीक है।

समकालीन प्रासंगिकता:

आज भी, मजदूर कई चुनौतियों का सामना करते हैं, जैसे कि असमानता, शोषण, असुरक्षा और अधिकारों का हनन। मज़दूर दिवस हमें इन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और मजदूरों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष करने का अवसर प्रदान करता है।

निष्कर्ष:

अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस मजदूर वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह सामाजिक न्याय और समानता के लिए एक सतत संघर्ष का प्रतीक भी है।

संदीप उपाध्याय

News
More stories
दिल्ली के 3 स्कूलों को मिली बम से उड़ाने की धमकी, बच्चों को भेजा घर, तलाश जारी