भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के. विजय राघवन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की सचिव डॉ रेणु स्वरूप, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान विभाग (डीएसआईआर) के सचिव डॉ शेखर मांडे, डीएसटी में अंतर्राष्ट्रीय प्रभाग (इंटरनेशनल डिविजन) के प्रमुख एस.के .वार्ष्णेय, अंतर्राष्ट्रीय प्रभाग (इंटरनेशनल डिविजन) डीएसटी, से ही डॉ उज्ज्वला तिर्की, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाग (इंटरनेशनल डिविजन) की प्रमुख डॉ रमा बंसल और मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इस बैठक में भाग लिया।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी भविष्य की वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति और रूपरेखा निर्धारित करेगी और भारत राष्ट्रों के समूह में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा, भारत निवेश के विशाल गंतव्य के रूप में उभर रहा हैI उन्होंने निजी क्षेत्र से भी जीवन के सभी क्षेत्रों में संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए इस अवसर का लाभ उठाने का आह्वान किया क्योंकि दोनों देशों के बीच गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं।
डॉ जितेंद्र सिंह ने हरित (ग्रीन) हाइड्रोजन के क्षेत्र में एक साथ काम करने के डच प्रस्ताव का स्वागत किया और कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के 75 वें स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में हरित (ग्रीन) हाइड्रोजन के उत्पादन और निर्यात के लिए भारत को वैश्विक (ग्लोबल) हब बनाने के लिए “राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन” की घोषणा की है। उन्होंने आगे कहा कि इसी तरह, कुशल ऊर्जा ग्रिडों (स्मार्ट एनर्जी ग्रिड्स), क्रियात्मक सामग्री (फंक्शनल मैटेरियल्स), बड़े आकार के आंकड़ों (बिग डेटा) और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (आईओटी) को संयुक्त अनुसंधान और विकास के लिए समर्थन दिया गया है ।
महासागर संसाधनों में सहयोग के लिए राजदूत मार्टन वैंडेन बर्ग के प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए, डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बताया कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रु 4077 करोड़ की अनुमानित लागत के साथ संसाधनों के लिए गहरे समुद्र का पता लगाने और महासागर संसाधनों के सतत उपयोग के लिए गहरे समुद्र में प्रौद्योगिकियों का विकास करने के लिए “डीप ओशन मिशन” पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के प्रस्ताव को मंजूरी दी है ।
डॉ जितेंद्र सिंह ने नीदरलैंड को विशेष रूप से हाल के दिनों में भारत द्वारा शुरू किए गए उल्लेखनीय सुधारों के मद्देनजर अंतरिक्ष क्षेत्र में उपयोगी आदान-प्रदान के लिए आमंत्रित किया जिससे की निजी क्षेत्र को भी उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष आधारित गतिविधियों में एकसमान अवसर मिल सके। डॉ. सिंह ने कहा कि नवाचारों में सहयोग से हमारी वैज्ञानिक अर्थव्यवस्था में वृद्धि होगी, क्योंकि हमारी चुनौतियां और प्राथमिकताएं भी एक समान हैं।
राजदूत मार्टन वैंडेन बर्ग ने अपने संबोधन में सौर ऊर्जा, गैस-आधारित प्रतिष्ठानों, साइबर सुरक्षा, आंकड़ा (डेटा) विज्ञान, शहरी जल प्रणाली और अन्य उभरते क्षेत्रों में भविष्य के सहयोग पर अपनी सहमति दी, जिससे भारत में लोगों के लिए रोजगार पैदा होगा। उन्होंने कहा कि सहयोग के लिए संस्थागत ढांचा पहले से ही मौजूद है और अब जमीन पर प्रभावी ढंग से काम करने की जरूरत है। राजदूत बर्ग ने जलवायु परिवर्तन को पूरी दुनिया के लिए चिंता का एक प्रमुख क्षेत्र बताया और कहा कि भारत और नीदरलैंड दोनों सार्वजनिक-निजी भागीदारी प्रक्रिया के माध्यम से कार्बन कैप्चर जैसे क्षेत्रों में काम कर सकते हैं। उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।
खेल (स्पोर्ट्स) विज्ञान सहयोग, दोनों पक्षों द्वारा सहमत होने का अन्य क्षेत्र है। राजदूत बर्ग ने यह भी उल्लेख किया कि डच कोच सोजर्ड मारिजने ने भारत की महिला हॉकी टीम को पुनर्जागरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।