भगत सिंह ने एक बार कहा था कि क्रांतिकारियों को फांसी नहीं देते, बल्कि उन्हें तोप के मुंह के सामने रखकर बारूद गोले से उड़ा देते हैं
नई दिल्ली: भगत सिंह भारत के इतिहास में एक ऐसा नाम है जिसने कहा था कि क्रांतिकारियों को फांसी नहीं देते, बल्कि उन्हें तोप के मुंह के सामने रखकर बारूद गोले से उड़ा देते हैं, ऐसे वीरों का योगदान रहा हमारी आजादी में. भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां है जो पंजाब, भारत में है. उनके जन्म के वक़्त उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजित और स्वरण सिंह जेल में थे.
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भगत सिंह की शुरूआती शिक्षा उनके लाहौर में ही हुई थी उसके बाद वह लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ने के लिए आ गये थे, भगत सिंह पढ़ाई में बहुत हुशियार थे. उन्होंने 20 वर्ष की उम्र में ही दुनिया की क्रांतियों को पढ़ डाला था. वह जब भी पुस्तकालय जाते तो वहां से अपने कोटे की जितनी भी बुक हुआ करती थी वह सब लेकर आ जाते और अपने दोस्तों के कार्ड से भी बुक इसु करवाकर लेकर आ जाते. उस समय भारत में क्रांतिकारियों की बुक लाना प्रतिबन्ध था लेकिन भगत सिंह अपनी लाइब्रेरी से छुपके से वहां से तमाम देशों की क्रांतियों की बुक को लेकर आ जाते और उन्हें बारी-बारी से साड़ी बुक्स को पढ़ जाते. भगत सिंह सिर्फ क्रांतिकारी ही नहीं थे वह पढ़ते भी थे अगर उन्होंने एक हाथ में क्रांति की मसाल उठाई तो दूसरे हाथ में उनके किताब हुआ करती थी. वह किताब में इस तरह से खो जाया अक्र्ते थे की उन्हें पता भी नहीं चलता था की उनके पास से कोई गुजर गया है. कई बार तो भगत सिंह रास्ते में ही चलते-चलते पढने लग जाते थे.
भगत सिंह के फांसी के दो घंटे पहले उनके पास उनके वकील मेहता जेल में आते हैं और भगत सिंह को पुकारते हैं लेकिन भगत सिंह उस समय क्रांतिकारी लेनिन की रूस की वोल्सेविक क्रांति की बुक पढ़ रहे होते हैं मेहता उनको आवाज़ देते हैं और कहते है कि भगत सिंह अगर तुम कहो तो मैं अंग्रेजी सरकार से तुम्हारी फांसी की सजा की जगह उम्र कैद की सजा करवा सकता हूँ. लेकिन भगत सिंह इसके लिए मना कर देते हैं लेकिन मेहता नहीं मानते और वो दुबारा उनको पुकारते हैं तो भगत सिंह का जवाब आता है की मेहता तुम मुझे अब बुक पढ़ने नहीं दोगे……
भगत सिंह के जीवन में अंग्रेज सरकार के प्रति सबसे पहला गुस्सा तब आया था जब “जलियांवाला कांड” हुआ था जलियांवाला बाग़ में “रौलेक्ट एक्ट” कानून के शान्ति तरीके से विरोध दर्ज करने के लिए कुछ कांग्रेस नेता वहां पर भाषण देने आये थे और लोग वहां पर इकट्ठा होकर उन्हें सुन रहे थे लेकिन उस समय पुलिस का बड़ा अधिकारी जनरल डॉयर वहां पर पहुँच गया उसने शान्ति के नाम पर वहां से लोगों को जाने के लिए कहा. लेकिन वहां जाने का एक ही रास्ता था और वो था जहाँ जनरल डॉयर खड़ा था. अब लोगों वहां से जाने की जगह नहीं मिली जनरल डॉयर को लगा की उसकी आज्ञा लोगों ने माना नहीं उसने अपने को वहां पर अपमानित समझा और उसने 3000 लोगों पर 20 राउंड की गोलियां चलवा दी थी. कहते है कि वहां पर सिर्फ एक जगह थी वो था वहां का कुआं, लोग उसमें कूद गये लेकिन देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से भर गया, जनरल डॉयर ने वहां अपर बच्चे बूढ़े,बच्चे और औरत किसी को नहीं छोड़ा, भगत सिंह की उस वक़्त उम्र मात्र 12 वर्ष थी. एक हफ्ते बाद जब भगत सिंह जलियांवाला बाग़ में पहुंचा तो उसने वहां अपर खून से सनी जमीन को देखा उस वक़्त भगत उस जमीन से अपनी पगड़ी में वहां की मिट्टी भर ले आये, भगत सिंह का सरकार के प्रति पहली बार गुस्सा नजर आया.
भगत सिंह की जिन्दगी में एक मोड़ और आया जब भारत में साइमन कमीशन आ रहा था तब भारत के तमाम क्रांतिकारियों ने इसका विरोध किया था उसमें से एक थे लाला लाजपत राय जो लाहौर में उनका विरोध कर रहे थे. विरोध करने के दौरान पुलिस ने लाजपतराय पर लाठिया बरसाई थी तब लाजपत राय ने कहा था कि “मेरे सिर अपर अंग्रेजों की एक भी लाठी का वार अंग्रेजो की कब्र में ठुकी कील के बराबर होगा” पुलिस ने लाला लाजपतराय के सर पर लाठिया बरसाई थी जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई थी. इस खबर को सुनकर भगत सिंह के मन में आया की वह अंग्रेजी सरकार को अब इस जमीन पर नहीं रहने देंगे और सबसे पहले उस पुलिस की हत्या करेंगे जिसने लाजपतराय पर पहली लाठी का वार किया था.
भगत सिंह ने अपनी 23 वर्ष की उम्र इतना पढ़ लिया था शायद उनकी उम्र के बराबर किसी ने पढ़ा हो, उन्होंने जेल में ही अपनी किताब लिखी थी जसी बाद में “भगत सिंह की जेल डायरी” के नाम से प्रकाशित हुई. भगत सिंह जेल की दीवारों पर कितनी कविताएँ लिख दी थी जो बाद में कितबों की शक्ल में दिखाई दी.
लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद भगत सिंह और उनके साथियों ने कसम खाई की वह लाला लाजपतराय को मारा है हम उसको नहीं छोड़ेंगे. उन्होंने प्लान बनाया की हम उसको कब मारेंगे और वो वक़्त आ गया भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश जूनियर पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद सेंट्रल एसेंबली में बम फेंक दिया. बम फेंकने के बाद वे भागे नहीं, जिसके नतीजतन वह पकड़े गये. यहीं से वह फांसी तक पहुंचे थे
भगत सिंह के पिता किशन सिंह ने एक बार कहा था की तुम अगर चाहो तो मैं अंग्रेजी सरकार को माफीनामा भेजकर उनसे फांसी की जगह उम्र कैद की फ़रियाद कर दूं इसके लिए भगत सिंह ने मना कर दिया और उन्होंने कहा की पिताजी मैं फांसी से तो मरूँगा नहीं लेकिन आप अंग्रेजी सरकार को माफीनामा लिखकर दोगे तो मैं जीते जी ही मर जाऊंगा. इसके बाद पिताजी चुप हो गये और वह मन ही मन रोने लगे तो उनको भगत सिंह चुप कराते हुए बोले कि ”मरकर भी मेरे दिल से वतन की उल्फत नहीं निकलेगी, मेरी मिट्टी से भी वतन की ही खुशबू आएगी.” -”आज जो मैं आगाज लिख रहा हूं, उसका अंजाम कल आएगा. मेरे खून का एक-एक कतरा कभी तो इंकलाब लाएगा. में कभी मरूँगा नहीं इस मिट्टी और यहाँ के युवाओं में जिन्दा रहूँगा जो आज़ादी की लड़ाई लड़ रहें.
जब सेंट्रल हॉल में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने बम गिराया तो वह वहां से भागे नहीं बल्कि वह तीनों वहीं खड़े रहे और अदालत में तीनों ने अपनी बात को रखते हुए कहा की हमने बम लोगों को मारने के लिए नहीं फेंका था बल्कि अपने जो लोग बहरे हो गये है उनको सुनाने के लिए फेंका था की वह की अब समय आ गया है कि अंग्रेजी सरकार का सम्राज्य समाप्त होने वाला है और इस बात को सुनने के बाद न्यायाधीश का जी.सी. हिल्टन ने भगत सिंह को 24 मार्च को फांसी देने की सजा सुना दी. लेकिन तब तक भगत सिंह और उनके साथी पूरे देश में इन्कलाब के लिए चर्चित हो गये थे जब भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी होने वाली थी तब उस जेल के बाहर लोगों का हुजूम इकठ्ठा हो गये थे अन्ग्रेस्जों को लगा की जब हम भगत सिंह को फांसी देंगे तो दंगा न मच जाएगा और इसलिए भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी से एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल के भीतर ही फांसी दे दी गई थी. और फांसी देने के बाद उनकी बॉडी को उनके घर के लोगों को नहीं दिया बल्कि जेल के गेट की दूसरी तरफ वाली दीवार को तोड़कर उनकी बॉडी को बोरी में भरकर ले गए इसके एक नदी किनारे उनकी बॉडी पर केरोसिन डालकर उनको जला दिया गया.
बॉडी ले जाते हुए एक व्यक्ति ने उनको देख लिया था और उसने जेल के बाहर बैठे लोगों को बता दिया उसके बाद वह सभी लोग नदी के पास पहुंचे लेकिन इतने में अंग्रेजों ने उनपर केरोसिन डालकर जला दिया था. उन लोगों ने आग को बुझाया और बॉडी को निकाला लेकिन बॉडी समझ में नहीं आ रही थी की वह किसकी है.
ये सब अंग्रेजी सरकार ने किया था और इसको लेकर युवाओं के अन्दर गुस्सा फूट पड़ा था और भगत सिंह और उनके साथियों के नाम के जयकारे लगने लगे.