संकष्टी चतुर्थी व्रत : इस विधि से करें भगवान गणेश की आराधना, कष्टों से मिलेगी मुक्ति

19 May, 2022
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संकष्टी चतुर्थी : हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह में दो चतुर्थी तिथि आती हैं। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। हर माह में आने वाली चतुर्थी का अपना अलग महत्व होता है।मनुष्य अपने जीवनकाल के दौरान कई परेशानियों और संकटों का सामना करता है। भगवान के प्रति हमारी आस्था और हमारा समर्पण ही हमें इन समस्याओं से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। संकष्टी चतुर्थी के व्रत को भी संकट हरने वाला व्रत माना गया है, इसलिए भक्तों के बीच इस व्रत का विशेष महत्व है।

भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए भी संकष्टी चतुर्थी के दिन को शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता गणेश जी का पूजन करने से व्यक्ति की सभी परेशानियां और बाधाएं दूर हो जाती हैं। साथ ही भगवान गणेश की पूजा अर्चना से यश, धन, वैभव और अच्छी सेहत की भी प्राप्ति होती है।

आप संकष्टी चतुर्थी के दिन ‘ॐ गं गणपतयै नम:’ मंत्र का 108 बार जाप कर सकते हैं।इसके अलावा इस दिन गणेश भगवान को तिल और गुड़ के लड्डुओं का भोग लगा सकते हैं। ऐसा करना शुभ होता है।

वहीं आज के दिन अगर किसी ब्राह्मण को भोजन कराया जाए, साथ ही गाय को हरी घास खिलाई जाए तो व्यक्ति की कुंडली में मौजूद ग्रह दोष भी समाप्त हो जाते हैं।

संकष्टी चतुर्थी के दिन साबुत हरी मूंग दाल का दान करने को भी लाभकारी माना गया है, इससे व्यक्ति को सद्बुद्धि मिलती है।

साथ ही आप संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश भगवान की पूजा करते समय हरे रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं। यूं तो हमें हमेशा ही सभी मनुष्यों का सम्मान करना चाहिए लेकिन विशेष कर इस दिन किन्नरों का अपमान नहीं करना चाहिए।

वहीं इस बात का भी ध्यान रखें कि इस दिन किसी भी व्यक्ति को उधार में कुछ नहीं देना चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन उधार लेन-देन करने से संचित धन में कमी आती है।

इसके अलावा इस दिन किसी भी पशु को न तो मारें और ना ही उसे तंग करें साथ ही इसका भी ध्यान रखें कि किसी के साथ कटु शब्दों का प्रयोग ना करें।

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि:- इस दिन आप प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठ जाएँ। व्रत करने वाले लोग सबसे पहले स्नान कर साफ़ और धुले हुए कपड़े पहन लें। इस दिन लाल रंग का वस्त्र धारण करना बेहद शुभ माना जाता है और साथ में यह भी कहा जाता है कि ऐसा करने से व्रत सफल होता है। स्नान के बाद गणपति की पूजा की शुरुआत करें। गणपति की पूजा करते समय जातक को अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए। सबसे पहले आप गणपति की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें।

पूजा में आप तिल, गुड़, लड्डू, फूल ताम्बे के कलश में पानी , धुप, चन्दन , प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रख लें। ध्यान रहे कि पूजा के समय आप देवी दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति भी अपने पास रखें। ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है। भगवान गणेश को रोली लगाएं, फूल और जल अर्पित करें।

संकष्टी को भगवान् गणपति को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं और फिर धूप-दीप जलाएं।
इसके बाद शाम के समय चांद के निकलने से पहले आप गणपति की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें।

पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बाटें। रात को चाँद देखने के बाद व्रत खोला जाता है और इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण होता है।

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा:- एक बार की बात है माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे हुए थे, तभी अचानक माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की इच्छा ज़ाहिर की। लेकिन समस्या की बात यह थी कि वहाँ उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो खेल में निर्णायक की भूमिका निभा सके। इस समस्या का समाधान निकालते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी। मिट्टी से बने बालक को दोनों ने यह आदेश दिया कि तुम खेल को अच्छी तरह से देखना और यह फैसला लेना कि कौन जीता और कौन हारा। खेल शुरू हुआ जिसमें माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात देकर विजयी हो रही थीं।

खेल चलता रहा लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया। बालक की इस गलती ने माता पार्वती को बहुत क्रोधित कर दिया जिसकी वजह से गुस्से में आकर बालक को श्राप दे दिया की वह बालक लंगड़ा हो जायेगा और जिसके बाद वो बालक लंगड़ा हो गया। बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बहुत क्षमा मांगी और उसे माफ़ कर देने को कहा। बालक को बार-बार निवेदन करते देख, माता ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो सकता लेकिन वह एक उपाय बता सकती हैं जिससे वह श्राप से मुक्ति पा सकेगा। माता पार्वती ने उपाय बताते हुए कहा कि संकष्टी वाले दिन पूजा करना और व्रत की विधि का पालन सच्चे मन से करना।

बालक ने व्रत की विधि को जानकर पूरी श्रद्धा पूर्वक और संपूर्ण विधि अनुसार व्रत किया। उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उस बालक को दर्शन दिए। भगवान गणेश ने उस बालक से उसकी इच्छा पूछी। तभी बालक ने गणेश जी से माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा को ज़ाहिर किया। गणेश जी ने उस बालक की मांग को पूरा कर दिया और उसे शिवलोक पहुँचा दिया, लेकिन जब वह पहुँचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले।

माता पार्वती भगवान शिव से नाराज़ होकर कैलाश छोड़कर कहीं चली गई थी। जब शिवजी ने उस बच्चे को पूछा की तुम यहां कैसे आए तो उसने बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है। यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न होकर वापस कैलाश लौट आती हैं।

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