पहली बार 1976 गढ़वाल के आयुक्त रहे एससी मिश्रा की अध्यक्षता में एक 18 सदस्यीय समिति गठित की गई थी। मिश्रा समिति ने अपनी रिपोर्ट में पुष्टि की थी कि जोशीमठ धीरे-धीरे धंस रहा है।
नई दिल्ली: शनिवार को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दोपहर को चमोली जिले के जोशीमठ पहुंचे। उन्होंने यहां भूधंसाव का निरीक्षण किया। बता दें , जोशीमठ कई दिनों से भूधंसाव से प्रभावित हो रहा है। जोशीमठ में करीब 600 परिवार ऐसे हैं। जो खतरे की जद में आ रहे हैं, अब तक कुल 561 इमारतों में दरारें देखी गईं, 38 परिवारों को स्थानांतरित किया गया है। अब तक शहर से 109 परिवार शिफ्ट हो चुके हैं। इनमें 49 परिवारों को प्रशासन ने राहत शिविरों में ठहराया है। 800 से अधिक भवन दरारें आने से असुरक्षित हो चुके हैं। इनकी दरारें लगातार चौड़ी हो रही हैं। जमीन भी जगह-जगह फट रही है। इस खतरे से निपटने के लिए सरकार ने विशेषज्ञों की आठ सदस्यीय टीम अध्ययन के लिए भेजी है, जो 48 घंटे से जोशीमठ में मौजूद है। इसके अलावा राज्य सरकार ने एक और बड़ा फैसला किया है जो मकान ज्यादा खतरे की जद में हैं। उन परिवारों को राज्य सरकार अगले 6 महीने तक हर माह 4000 रुपए मुख्यमंत्री राहत कोष से किराया देगी।

मुख्यमंत्री को देखकर रो पड़े प्रभावित
इस दौरान मुख्मंत्री ने कहा कि जोशीमठ हमारा पौराणिक शहर है। उत्तराखंड सरकार इस मामले पर अलर्ट है। हमारा मकसद सबको बचाना है। प्रभावितों के विस्थापन के लिए वैल्पिक जगह तलाशी जा रहा है। मुख्यमंत्री ने प्रभावित परिवारों से मुलाकात कर उनका हाल जाना। इस दौरान सीएम से बात करते-करते प्रभावितों की आंखें भर आईंं। मुख्यमंत्री धामी ने जोशीमठ का हवाई निरीक्षण भी किया। इसके अलावा सीएम धामी अधिकारियों के साथ जोशीमठ में बैठक भी करेंगे।
जेंडर जॉन में घोषित जोशीमठ

सरकार ने जोशीमठ में तत्काल डेंजर जोन को खाली करने और सुरक्षित स्थान पर पुनर्वास केंद्र बनाने की तैयारी कर ली है। जोशीमठ में आपदा कंट्रोल रूम स्थापित करने के साथ ही आवश्यकता होने पर प्रभावितों के लिए एयर लिफ्ट सुविधा की तैयारी रखी गई है।
अचानक जोशीमठ में भू-धंसाव का मामला क्यों आया चर्चा में ?

बीते सोमवार को कई मकानों में जब अचानक बड़ी दरारें आ गईं, तो पूरे नगर में भय फैल गया। ये दरारें हर दिन बढ़ रही हैं। पहाड़ी से रात को ही अचानक मटमैले पानी का रिसाव भी शुरू हो गया। दरार आने से जोशीमठ कॉलोनी का एक पुश्ता भी ढह गया। साथ ही बद्रीनाथ हाईवे पर भी मोटी दरारें आईं। वहीं तहसील के आवासीय भवनों में भी हल्की दरारें दिखीं। भू-धंसाव से ज्योतेश्वर मंदिर और मंदिर परिसर में दरारें आ गई हैं। सिंहधार वार्ड में बहुमंजिला होटल माउंट व्यू और मलारी इन जमीन धंसने से तिरछे हो गए। मिली जानकारी के मुताबिक, सोमवार रात करीब 10 बजे होटल की दीवारों से चटकने की आवाज आनी शुरू हो गई। जिससे इन होटलों के पीछे रहने वाले पांच परिवारों के लोग दहशत में आ गए।
जोशीमठ में भू धंसाव का क्या है कारण?

जोशीमठ में भू-धंसाव का कारण बेतरतीब निर्माण, पानी का रिसाव, ऊपरी मिट्टी का कटाव और मानव जनित कारणों से जल धाराओं के प्राकृतिक प्रवाह में रुकावट को बताया गया। जानकारी के मुताबिक, पिछले दो दशक में जोशीमठ का अनियंत्रित विकास हुआ है। बारिश और पूरे साल घरों से निकलने वाला पानी नदियों में जाने के बजाय जमीन के भीतर समा रहा है। यह भू-धंसाव का प्रमुख कारण है। धौलीगंगा और अलकनंदा नदियां विष्णुप्रयाग क्षेत्र में लगातार टो कटिंग (नीचे से कटाव) कर रही हैं। इस वजह से भी जोशीमठ में भू-धंसाव तेजी से बढ़ा है। बता दें, 2013 में आई केदारनाथ आपदा, 2021 की रैणी आपदा, बदरीनाथ क्षेत्र के पांडुकेश्वर में बादल फटने की घटनाएं भी भू-धंसाव के काफी हद तक जिम्मेदार हैं।
50 साल पहले ही जोशीमठ के भू-धसांव की दे दी गई थी जानकारी

जोशीमठ में भले ही आज भू-धसांव की घटनाएं सामने आई हों लेकिन इसकी चेतावनी 50 साल पहले दे दी गई थी। दरअसल, जोशीमठ पहाड़ों के सदियों पुराने मलबे पर बसा है। ये शुरू से ही दरक रहा है। उत्तराखंड जब यूपी का हिस्सा था, तब इसकी जांच के लिए पहली बार 1976 गढ़वाल के आयुक्त रहे एससी मिश्रा की अध्यक्षता में एक 18 सदस्यीय समिति गठित की गई थी। मिश्रा समिति ने अपनी रिपोर्ट में पुष्टि की थी कि जोशीमठ धीरे-धीरे धंस रहा है।
आगे जोशीमठ कितने खतरे में ?

जोशीमठ से भारत-तिब्बत सीमा महज 100 किलोमीटर दूर है। भू-धंसाव का क्षेत्र सैन्य क्षेत्र और आईटीबीपी के मुख्यालय की ओर बढ़ना शुरू हो गया है। सैन्य क्षेत्र में जाने वाली सड़क भी धंसनी शुरू हो गई है। जोशीमठ में भारतीय सेना का ब्रिगेड मुख्यालय और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की एक बटालियन तैनात है। जोशीमठ भारत-तिब्बत सीमा (चीन के अधिकार क्षेत्र) का अंतिम शहर है। यहां से नीती और माणा घाटियां भारत-तिब्बत सीमा से जुड़ती हैं। भू-धंसाव का क्षेत्र बढ़ता रहा तो यहां जवानों का रहना मुश्किल हो जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति में देश की सुरक्षा को भई खतरा पैदा हो सकता है।
Edit By Deshhit News