नई दिल्ली: आज भारतीय जनता पार्टी अपना 44 वां स्थापना दिवस मना रही है तो वहीं, पूरा देश हनुमान जंयती के जश्न में डूबा है। बीजेपी के 44 वें स्थापना दिवस पर और हनुमान जंयती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज हम देश के कोने-कोने में भगवान हनुमान की जयंती मना रहे हैं। हनुमान जी का जीवन आज भी हमने भारत की विकास यात्रा में प्रेरणा देते हैं। उन्होंने कहा कि आज भारत हनुमान की शक्ति की तरह ही अपनी क्षमता का एहसास कर रहा है। पीएम मोदी ने आगे कहा कि हमारी पार्टी और हमारे पार्टी कार्यकर्ता लगातार हनुमान जी के मूल्यों और शिक्षाओं से प्रेरणा लेते हैं। महासागर जैसी बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत पहले से कहीं ज्यादा मजबूत होकर उभरा है। अगर हम भगवान हनुमान के पूरे जीवन को देखें, तो उनके पास ‘कर सकते हैं’ वाला रवैया था। जिसने उन्हें सभी प्रकार की सफलता लाने में मदद की। उन्होंने कहा कि भाजपा भारत के लिए दिन-रात काम कर रही है और हमारी पार्टी ‘माँ भारती’, संविधान और राष्ट्र को समर्पित है। हनुमान जयंती पर, मैं सभी के लिए उनके आशीर्वाद की प्रार्थना करता हूं।

भाजपा के 44वें स्थापना दिवस पर जेपी नड्डा ने किया ध्वजारोहण

वहीं,भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी के 44वां स्थापना दिवस पर भाजपा मुख्यालय में पार्टी के 44वें स्थापना दिवस के मौके पर ध्वजारोहण किया। ध्वजारोहण के बाद उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने कच्छ से लेकर पूर्वोत्तर तक और कश्मीर से लेकर केरल तक अपनी छाप छोड़ी है। उन्होंने कहा कि हमारे कार्यकर्ताओं ने पार्टी को स्थापित किया है। आज पार्टी द्वारा 1 लाख 80 हजार शक्ति केंद्रों पर काम किया जा रहा है। 8 लाख 40 हजार बूथों पर भाजपा का बूथ अध्यक्ष मौजूद है। नड्डा ने आगे कहा कि मैं अपने करोड़ों कार्यकर्ताओं को पार्टी के स्थापना दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई देता हूं। आज के दिन हमारे सभी वरिष्ठ नेता… जिन्होंने अपने खून-पसीने से इस पार्टी को सींचा ये हमारी जिम्मेदारी है। आज हमें यह संकल्प लेना है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हमें एक क्षण के लिए भी बैठना नहीं है और हम पार्टी को और आगे ले जाएंगे।
गिरिराज सिंह ने भी भाजपा के 44वें स्थापना दिवस पर बीजेपी कार्यकर्ताओं को दी शुभकामनाएं
वहीं, भाजपा के 44वें स्थापना दिवस पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा, ‘जिस तरह से हनुमान जी भगवान राम का काम किए बिना रुकते नहीं थे, थकते नहीं थे, वैसे ही पीएम मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को भी बिना रुके 2047 तक भारत को मजबूत बनाने के निर्देश दिए हैं। इससे पहले बीजेपी स्थापना दिवस को लेकर गिरिराज सिंह ने ट्वीट कर लिखा, 44 वर्षों में असंख्य बीजेपी कार्यकर्ताओं ने भारत को विश्व पटल पर चमकता सितारा बनाने में असंख्य योगदान दिया। भारत परमाणु शक्ति बना, दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना, कोरोना में दुनिया को वैक्सीन दी और आज 80 करोड़ जरूरतमंदों को खाना दे रहा है। “वाह मोदी जी वाह”। एक अन्य ट्वीट में गिरिराज सिंह ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को बधाई देते हुए लिखा, सदैव राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के “44वें स्थापना दिवस” के पावन अवसर पर सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
6 अप्रैल 1980 को हुई थी भाजपा की स्थापना

भारतीय जनता पार्टी भारत का एक प्रमुख राजनीतिक दल है। इस दल के वर्तमान अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हैं। भारतीय जनता युवा मोर्चा इस दल का युवा संगठन है। इस पार्टी ने अपनी शुरुआत हिंदू एजेंडे के साथ की थी। पार्टी का गठन पुर्नगठित जनसंघ के रूप में 6 अप्रैल 1980 को सम्पन्न हुआ था। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में प्रथम व्यक्ति अटल बिहारी वाजपेयी रहे। इस दल में अधिकांश सदस्य भूतपूर्व जनसंघ के शामिल हुए, जिसका 1977 में जनता पार्टी में विलय हो गया था। इसके साथ ही कुछ गैर जनसंघी भी इसमें शामिल हुए। इस दल के गठन के बाद जो चुनाव हुये, उसमें इस दल को अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिली और 1984 के लोकसभा के आम चुनाव में इस दल के दो सदस्य लोकसभा के लिए निर्वाचित किये गये। 1989 में चुनाव तथा 1991के लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में इस दल को पर्याप्त सफलता मिली।
1980 से पहले भाजपा को इन तीन नामों से जाना जाता था

भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 1980 में की गई थी। इससे पहले 1977 से 1979 तक इसे ‘जनता पार्टी’ के साथ के ‘भारतीय जनसंघ’ और उससे पहले 1951 से 1977 तक ‘भारतीय जनसंघ‘ के नाम से जाना जाता था। भारतीय जनता पार्टी के इतिहास को तीन अलग-अलग हिस्सों में बांटा जा सकता है- भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी, भारतीय जनता पार्टी।
1. भारतीय जनसंघ
‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना शयाम प्रसाद मुखर्जी ने1951 में की थी। पार्टी को पहले आम चुनाव में कोई खास सफलता नहीं मिली, लेकिन इसे अपनी पहचान स्थापित करने में कामयाबी जरुर प्राप्त हो गई थी। भारतीय जनसंघ ने शुरु से ही कश्मीर की एकता, गौ-रक्षा, जमींदारी प्रथा और परमिट-लाइसेंस-कोटा राज आदि समाप्त करने जैसे मुद्दों पर विशेष रूप से जोर दिया था। कांग्रेस का विरोध करते हुए जनसंघ ने राज्यों में अपना संगठन फैलाने और उसे मजबूती प्रदान करने का काम प्रारम्भ किया, लेकिन चुनावों में पार्टी को आशा के अनुरूप कामयाबी प्राप्त नहीं हुई। कांग्रेस का विरोध करने के लिए जनसंघ ने जयप्रकाश नारायण का समर्थन भी किया। जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ नारा दिया कि “सिंहासन हटाओ कि जनता आती है।” 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की। इस दौरान दूसरी विपक्षी पार्टियों की तरह जनसंघ के भी हजारों कार्यकर्ताओं और नेताओं को जेल में डाला गया।
2. जनता पार्टी
1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। तब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और भारतीय जनसंघ के अटल बिहारी बाजपेयी को विदेश मंत्री और लालकृष्ण आडवाणी को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया। लेकिन ये सरकार अधिक दिनों तक टिक नहीं सकी, क्योंकि आपसी गुटबाजी और लड़ाई की वजह से सरकार तीस माह में ही गिर गई। 1980 के चुनावों में विभाजित जनता पार्टी की हार हुई। भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी से पृथक् हो गया और अब उसने अपना नया नाम ‘भारतीय जनता पार्टी’ रख लिया। इस समय पार्टी संसट के दौर से गुजर रही थी। अटल बिहारी वाजपेयी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। दिसंबर,1980 में मुबंई में भारतीय जनता पार्टी का पहला अधिवेशन हुआ। भाजपा ने कांग्रेस के साथ अपने विरोध को जारी रखा और पंजाब और श्रीलंका को लेकर तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार की आलोचना की।
1984 में भाजपा का चुनावी हार

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए आम चुनावों में उनके पुत्र राजीव गांधी को तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त हुआ। चुनाव में भाजपा को सिर्फ दो सीटें ही प्राप्त हुईं। ये बीजेपी के लिए एक बहुत बड़ा झटका था। पार्टी ने इस झटके से उबरने के प्रयास शुरु कर दिए। उसने 1984 में हुए आम चुनावों के नतीजों का विश्लेषण किया। चुनाव सुधारों की वकालत की गई। बंगलादेश से आने वाले घुसपैठियों की समस्या को उठाया गया। भाजपा ने बोफोर्स तोप सौदे को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को घेरा। 1989 के चुनावों में भाजपा ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल से सीटों का तालमेल किया। इन चुनावों में भाजपा ने लोकसभा में अपने सदस्यों की संख्या 1984 में दो से बढ़ाकर 89 तक कर दी। विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को भाजपा ने बाहर से बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान किया। बाद में पार्टी के नेताओं ने अपने इस फैसले को गलत ठहराया।
1991 में मिली थी भाजपा को चुनावी जीत

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़ी जातियों और जनजातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कीं। भाजपा को ऐसा लगने लगा कि वे अपना वोट बैंक खड़ा करना चाहते हैं। इसीलिए अब भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे को दोबारा उठाया। पार्टी ने अयोध्या में ‘बाबरी मस्जिद’ की जगह राम मंदिर बनाने की बात कही। इस प्रकार हिंदू वोट बैंक को इकठ्ठा रखने की कोशिश की गई, जिसके मंडल रिपोर्ट आने के बाद बँट जाने का खतरा पैदा हो गया था। अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा भी की। उनकी गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद 1991 में हुए चुनावों में प्रचार के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। भाजपा को इन चुनावों में 119 सीटों पर विजय मिली। इसका बड़ा श्रेय अयोध्या मुद्दे को जाता था। कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, लेकिन पी.वी, नरसिंहराव अल्पमत की सरकार चलाते रहे। भाजपा ने सरकार का विरोध किया। शेयर घोटाले और आर्थिक उदारीकरण को लेकर उसने सरकार को घेरना लगातार जारी रखा।
1996 में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी

1996 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरी। राष्ट्रपति डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से उनकी सरकार सिर्फ 13 दिन में गिर गई। बाद में कांग्रेस के बाहरी समर्थन से बनीं एच. डी. देवगौडा और इंद्र कुमार गुजराल की सरकारें भी कार्यकाल पूरा करने में असमर्थ रहीं। 1998 में एक बार फिर आम चुनाव हुए। इन चुनावों में भाजपा ने क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन और सीटों का तालेमल किया। खुद पार्टी को 181 सीटों पर जीत हासिल हुई। अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने, लेकिन गठबंधन की एक प्रमुख सहयोगी जयललिता की AIADMK के समर्थन वापस लेने से वाजपेयी सरकार गिर गई। 1999 में एक बार फिर आम चुनाव हुए। इन चुनावों को भाजपा ने 23 सहयोगी पार्टियों के साथ साझा घोषणा-पत्र पर लड़ा और गठबंधन को “राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन” (एन.डी.ए.) का नाम दिया। एनडीए को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी फिर प्रधानमंत्री बनाये गये। वे सही मायनों में पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे।
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