आखिर क्या है, महाशिवरात्रि की विशेष पूजा? इसे करने का क्या है सही तरीका ?

28 Feb, 2022
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महाशिवरात्रि 2022 : महाशिवरात्रि यानी भगवान शिव का दिन। कहा जाता है, कि इस दिन भगवान शिव की, पूरे विधि-विधान से की गई पूजा, विशेष फल देती है।महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की भक्ति भाव से पूजा और आराधना करने से, जीवन के सभी प्रकार के सुखों को प्राप्त किया जा सकता है। महाशिवरात्रि के इस पावन दिन की शुरुआत, ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, दैनिक कार्यों से निर्वित होकर स्नान करें।स्नान के बाद भगवान शिव का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।स्वच्छ वस्त्र डालकर, किसी शिवालय में शिवलिंग के सामने बैठकर, भगवान शिव का ध्यान करें।कहते हैं इस दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था, इसलिए इस दिन माता पार्वती की पूजा भी अति फलदायीहोती है। माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं।

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शिव परिवार की पूजा :
सबसे पहले पूरे शिव परिवार को जल अर्पित करें। इसके बाद भगवान शिव का जलाभिषेक कर उनको नमन करें। भगवान शिव का अभिषेक, करें ॐ नमः शिवाय का जाप करे।फिर दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करें, और निरंतर ॐ नमः शिवाय का जाप करें।आप चाहे तो अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।इसके बाद , भोले शंकर का शुद्ध जल से अभिषेक कर उन्हें वस्त्र,जनेऊ अर्पित करें।

भगवान शिव को करें अर्पित :

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अब भोलेशंकर को पुष्प, अक्षत् यानी साबुत चावल , बेल पत्र, आक-धतूरा के फूल, भांग, इत्र, साबुत हल्दी, इलायची, लौंग, फल, सुपारी एक एक करके शिवलिंग पर चढ़ाएं, फिर भगवान शिव को खीर या मिठाई और फलों का भोग लगाएं।
और मन में उनका ध्यान और ॐ नमः शिवाय का जाप करते रहे।

महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त :

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इस बार महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त 1 मार्च यानि कि मंगलवार को प्रातः 3.16 बजे से शुरू होने जा रहा है।
जो चतुर्दशी अगले दिन 2 मार्च यानी बुधवार को प्रातः 1 बजे समाप्त होगी।

ब्रह्म मुहूर्त है बेहद ख़ास :
हिंदू धर्म में ब्रह्म मुहूर्त को बेहद ख़ास और शुभ माना गया है।
रात के आख़िरी पहर के बाद और सूर्योदय से ठीक पहले का जो समय होता है उसे ब्रह्म महूरत कहा जाता है, यानी
सुबह से 4 बजे से लेकर सुबह के साढ़े 5 बजे तक का जो समय होता है, वो ब्रह्म मुहूर्त कहलाता है।
और इसी मुहूर्त में भगवान की पूजा का महत्व होता है।

महाशिवरात्रि पर पूरे विधि :

विधान से की गई यह पूजा, पूरी उम्र के पापों का निवारण है। आप भी पूर्ण भक्ति और आस्था के साथ महादेव की अर्चना कर, भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करें, भोलेनाथ आपकी सभी मनोकामना पूरी करे,
इसी मंगलकामना के साथ। हमे दीजिये इज़ाजत। ॐ नमः शिवाय।

शिवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा :

जानें शिवरात्रि के महात्मय से जुड़ी एक रोचक पौराणिक कथा


धर्म शास्त्रों में कहा गया है की, महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। लेकिन क्या आपको पता है महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है और इसके पीछे की पौराणिक घटना क्या है? आइए, जानते है, महाशिवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में, जो इस दिन के महत्व के बारे में बताती हैं।

पहली कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भोलेनाथ से पूछा कि, “कौन सा व्रत उन्हें सर्वोत्तम भक्ति और पुण्य प्रदान कर सकता है? तब भोले शंकर ने स्वयं, इस पवित्र महाशिवरात्रि के बारे में बताया था। उन्होंने कहा कि “फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात मुझे प्रसन्न करती है” इसीलिए कहा जाता है कि, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करना बहुत आसान होता है।

इस पर्व से एक और पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. इस कथा के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु और ब्रह्मा के सामने, सबसे पहले शिव, करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए, ईशान संहिता के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच, अपनी महानता और श्रेष्ठता सिद्ध करने पर बहस हो गई। तब भगवान शिव को हस्तक्षेप करना पड़ा। और वह अग्नि के स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तंभ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। तब विष्णु और ब्रह्मा ने इस स्तंभ के किनारे और छोर को जानने का फैसला किया। यह जानने के लिए विष्णु पाताल लोक गए और ब्रह्मा अपने हंस वाहन पर बैठ गए और ऊपर की ओर ऊपर की ओर ऊंचाई नापने चल दिए। लेकिन दोनों ही इसकी शुरुआत और अंत नहीं जान सके और लौट आए, परन्तु तब तक उनका क्रोध शांत हो चुका था औरऔर उन दोनों के बड़प्पन का अहंकार चूर चूर हो चूका था। तब शिव प्रकट हुए और सभी चीजों का बहाल किया। ऐसा कहा जाता है, कि शिव का, यह प्रकटीकरण, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात को हुआ था। इसलिए इस रात को महाशिवरात्रि कहा जाता है।

वहीं एक और पौराणिक कथा के अनुसार, ये भी कहा जाता है कि मां सती के पुनर्जन्म में जब वह माता पार्वती बनीं, तब मां पार्वती, शिवजी को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थी। और उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए, कई जतन किए थे। लेकिन भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए। जिसके बाद मां पार्वती ने गौरीकुंड में कठिन साधना की और शिवजी को मोह लिया। जिसके बाद इस दिन शिवजी और मां पार्वती का विवाह हुआ और शिव ने गृहस्थ जीवन में वैराग्य के साथ प्रवेश किया था। और तभी से महाशिवरात्रि के दिन, शिव और शक्ति के मिलन के उत्सव के रूप में, भक्त उपवास और पूजा कर के इस त्योहार को मनाते हैं और शिव और शक्ति का आशीर्वाद लेते हैं।

महाशिवरात्रि की एक और पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान अमृत और विष दोनों का कलश निकला था। विष का पात्र देखकर देवता और राक्षस दोनों डर गए, क्योंकि यह विष पूरी दुनिया को तबाह कर सकता था। दुनिया को बचाने के लिए देवताओं ने भगवान शिव से मदद मांगी और शिव जी ने सृष्टि को बचाने के लिए पूरा विष स्वयं पी लिया, लेकिन उन्होंने विष को निगला नहीं। विष को गले में ही रोक लिया जिससे उनके गले का रंग नीला हो गया। और शिव जी नीलकंठ कहलाये। ऐसा माना जाता है की, क्यूंकि भगवान शिव ने दुनिया की रक्षा की थी इसलिए आज भी धरतीवासी महाशिवरात्रि का पर्व मनाकर शिव जी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं।

भगवान शिव को महाशिवरात्रि अति प्रिय है और शास्त्रों में बताया गया है कि महाशिवरात्रि के दिन पूरी रात जागने से, भाग्य भी जागता है और हमेशा उन्नति की प्राप्ति होती है। क्यूंकि भगवान शिव मनुष्य के सभी कष्टों और पापों का नाश करने वाले हैं। भगवान शिव ही सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलासकते हैं और इसी कारण महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा करने से जाने-अनजाने में किए गए पापों की क्षमा और आने वाले महीने में भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। ॐ नमः शिवाय

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