नई दिल्ली: गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही उत्तराखंड के हल्द्वानी के करीब 50 हजार लोगों को बड़ी राहत मिली है। उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। मामले में अगली सुनवाई अब 7 फरवरी को होगी। बता दें, रेलवे का दावा है कि उसकी 78 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा है। रेलवे की जमीन पर 4365 कच्चे-पक्के मकान बने हैं। हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को रेलवे की जमीन पर अवैध अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। बनभूलपुरा में रेलवे की कथित अतिक्रमित 29 एकड़ जमीन पर धार्मिक स्थल, स्कूल, व्यापारिक प्रतिष्ठान और आवास हैं।
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क्या होता है अतिक्रमण ?
कानून के शब्दों में कहें तो जब कोई व्यक्ति दूसरों की संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन करता है तो वह “अतिक्रमण” कहलाता है।
क्या है पूरा मामला?

उत्तराखंड के हल्द्वानी में बनभूलपुरा व गफूर बस्ती में बुलडोजर चलाने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। रेलवे की 29 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने के हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट अभी और सुनवाई करेगा। रेलवे ने इस जमीन पर 50000 लोगों द्वारा कब्जा करने की बात कही है। उन्होंने इसी को लेकर हाईकोर्ट का रुख किया था, जहां जमीन से कब्जा हटाने की बात कही गई थी। सुनवाई के दौरान आज शीर्ष न्यायालय ने मानवीय एंगल को देखते हुए फिलहाल बुलडोजर न चलाने का आदेश दिया है। अब मामले में अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी। कोर्ट द्वारा कई बाते इस सुनवाई में कही गई। रेलवे का दावा है कि उसकी 78 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा है। रेलवे की जमीन पर 4365 कच्चे-पक्के मकान बने हैं। बता दें कि बनभूलपुरा में रेलवे की कथित अतिक्रमित 29 एकड़ जमीन पर धार्मिक स्थल, स्कूल, व्यापारिक प्रतिष्ठान और आवास हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में क्या कहा?
1.सुप्रीम कोर्ट ने आज मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले में मानवीय एंगल जुड़ा है और बुलडोजर चलाकर एकदम सभी 50 हजार लोग कैसे हटेंगे।
2. शीर्ष न्यायालय ने आगे उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि वे इस मामले में अभी और सुनवाई करेंगे और 7 फरवरी की अगली तारीख भी दी।
3.सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि रातों रात 50 हजार लोग आखिर कैसे हटाए जा सकते हैं।

4.कोर्ट ने मामले में रेलवे और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।
5.न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ ने कहा कि यह एक ‘मानवीय मुद्दा’ है और पुनर्वास योजना जैसे कुछ व्यावहारिक समाधान खोजने की जरूरत है।
6.उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने फैसला आने पर कहा कि वे इस बात पर कायम है कि यह रेलवे की जमीन है। धामी ने कहा कि हम कोर्ट के आदेश के अनुसार आगे बढ़ेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी दाखिल अर्जी को बताया था गलत
SC में निवासियों द्वारा दाखिल अर्जी में कहा गया था कि उच्च न्यायालय ने विवादित आदेश पारित करने में गंभीर गलती की है। याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ताओं सहित कई लोगों के मामले जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष अभी तक लंबित हैं।
50 साल पहले शुरु हुआ था अतिक्रमण?

बताया जाता है कि बनभूलपुरा व गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर 50 साल पहले अतिक्रमण शुरू हुआ था। अतिक्रमण अब रेलवे की 78 एकड़ जमीन पर फैल गया है। स्थानीय लोगों का दावा है कि वे 50 साल से भी अधिक समय से यहां रह रहे हैं। उन्हें वोटर कार्ड, आधार कार्ड, राशन कार्ड, बिजली, पानी, सड़क, स्कूल आदि सभी सुविधाएं भी सरकारों ने ही दी हैं। लोग सभी सरकारी योजनाओं का लाभ भी उठा रहे हैं। पीएम आवास योजना से भी लोग लाभान्वित हो चुके हैं। दावा है कि वे नगर निगम को टैक्स भी देते हैं। इनमें मुस्लिम आबादी की बहुलता है।
2007 में भी अतिक्रमण हटाने का दिया गया था आदेश

साल 2007 में भी हाईकोर्ट ने रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था। इसके बाद 2013 में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल हुई। हाईकोर्ट के निर्देश पर राज्य संपदा अधिकारी पूर्वोत्तर रेलवे इज्जतनगर मंडल में 2018 से सुनवाई शुरू हुई थी। रेलवे के अनुसार, अतिक्रमण की जद में आए 4365 वादों की सुनवाई के दौरान कोई भी अतिक्रमणकारी कब्जे को लेकर ठोस सबूत नहीं दिखा पाया। किसी के पास भी जमीन संबंधित कागजात नहीं मिले।
Edit By Deshhit News