उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में एक शख्स ने शाहजहां की तरह अपनी पत्नी की याद में एक मंदिर का निर्माण करवाया है, इतना ही नहीं वह सुबह-शाम जाकर उस मंदिर में पूजा भी करता है.
उत्तर प्रदेश में वैसे तो इन दिनों चर्चा पीसीएस अधिकारी ज्योति मौर्या, प्रेमी सचिन को पाने के लिए पाकिस्तान से नोएडा पहुंची सीमा हैदर और राजस्थान से पाकिस्तान जाकर नसरुल्लाह से निकाह करने वाली अंजू की हो रही है. शादी और बेवफाई की इन ख़बरों के बीच प्रेम और सात जन्मों के रिश्तों की भी खबर है. फतेहपुर जिले में पत्नी की याद में एक पति ने मंदिर का निर्माण कर शाहजहां की मोहब्बत को ताजा कर दिया. यूपी के फतेहपुर में एक शख्स मंदिर में पत्नी की मूर्ति स्थापित कर उसकी सुबह-शाम पूजा-पाठ करता है.

जिस तरह से शहजहां ने मुमताज के लिए ताज महल बनवाया था उसी तरह से इस शख्स ने भी अपनी पत्नी के लिए मंदिर बनवाया है.
जिले के बकेवर थाना क्षेत्र के पधारा गांव में रहने वाले राम सेवक रैदास ने अपनी पत्नी की याद में मंदिर का निर्माण करवाया है. रामसेवक रैदास की पत्नी का निधन 18 मई 2020 को हो गया था. कोरोना काल में पत्नी के निधन के बाद से रामसेवक गुमसुम रहने लगे. वह पत्नी के चले जाने से बहुत हताश हो गए थे. इसके बाद उन्होंने मंदिर बनवाने का फैसला किया. मंदिर बनवाने के बाद साथ ही उन्होंने वहां पर पूजा पाठ करना भी शुरू कर दिया.
खेत में बनवाया मंदिर
रामसेवक रैदास अमीन के पद से रिटायर्ड हैं. पत्नी के चले जाने के कुछ महीनों तक तो वह बहुत दुखी रहे लेकिन बाद में उन्होंने मंदिर निर्माण करवाया. मंदिर निर्माण के लिए उन्होंने अपने खेत की जमीन को चुना. उन्होंने वहां पर दो मंजिला मंदिर बनवाया है जिसमें उनकी पत्नी की मूर्ती की स्थापना की गई है. उनकी पत्नी की मूर्ति भी उनके कद काठी के मुताबिक बनाई गई है. रामसवेक के 5 बच्चे हैं जिनमें 3 लड़के और 2 लड़कियां हैं.

उनकी शादी 18 मई 1977 को हुई थी. पति पत्नी के जन्म को भी याद रखते हैं. उन्होंने बताया कि पत्नी का जन्म 18 मई 1961 को हुआ था. 18 मई 2020 को उसने पत्नी को खो दिया. उन्होनें बताया की शादी के बाद उन्होंने काफी खुशहाल जीवन एक साथ व्यतीत किया.

बताया कि पत्नी जब तक जीवित जीवित रहीं तब तक अथाह प्रेम किया. इतना प्रेम करती थीं कि उनका साया उनके साथ बराबर चला करता था. मैं कभी रात विरात आता जाता था तो साया आगे-आगे दिखाई दिया करता था. मेरे जीवन काल में त्याग की मूर्ति बनकर आई और मुझे तिनका तक उठा कर नहीं रखने दिया. कहती थी मैं करूंगी, तुम बैठो. इस तरह कोरोना काल में जब मृत्यु हो गई तो हम बेचैन हो गए. हम इतना विचलित हो गए कि हमारे अंदर पागलपन आ गया कि मैं क्या करूं। मुझे वह रात-दिन दिखाई देने लगी. अचानक मेरे अंदर सोच आई कि आगरा में शाहजहां ने मुमताज के लिए ताजमहल बना कर खड़ा कर दिया. मैं तो एक छोटा सा आदमी हूं, मैं अपनी पत्नी की याद में एक छोटा सा मंदिर बनवाकर उनकी पूजा-अर्चना कर दूंगा. पूरा जीवन उनकी याद में गुजार दूंगा. उन्होंने हमारे साथ जीवन भर कदम-कदम पर साथ दिया है. मैं उनका साथ मरते दम तक साथ दूंगा और मंदिर बनवाकर यहां रहने लगा. मुझे एहसास होता है कि आज भी वह मेरे पास रहती हैं. मैं कभी विचलित नहीं होता। उनका साया मेरे साथ बराबर चलता रहता है. मैं यहीं रहकर उनकी पूजा-अर्चना करता हूं. सुबह शाम उनकी देखभाल करता हूं.