भाजपा के जीतने के बाद कैसा होगा कांग्रेस-बसपा का भविष्य ।
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधान चुनाव के परिणाम आने जारी हैं। राज्य में एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने जा रही है। इस बार जहां समाजवादी पार्टी ने पिछले चुनाव के मुकाबले बेहतर तो किया है लेकिन बहुमत से काफी पीछे रह गई है। सबसे शर्मनाक स्थिति बसपा और कांग्रेस के लिए है जो कि पांच सीटें जीतने में भी सफल नहीं हो पा रही है।
उत्तर प्रदेश में भाजपा की लगातार दूसरी बार धमाकेदार जीत ने ये तो साबित कर ही दिया है कि फिलहाल उसका कोई विकल्प नहीं है। साथ ही समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के लिए ये सवाल और गंभीरता से खड़ा हो गया है कि उनका भविष्य क्या है और आने वाले वक्त में इन पार्टियों की अहमियत कितनी बचेगी? दरअसल हर चुनाव के बाद हारने वाली पार्टियों को लेकर ऐसे कुछ सवाल खड़े होते हैं और जीत की एक लहर के आगे ऐसी पार्टियां खुद को कुछ वक्त तक बेबस महसूस करती हैं।
आरोप प्रत्यारोप के दौर चलते हैं, ईवीएम के साथ साथ निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं और कुछ समय बाद जनता के फैसले के आगे सब मजबूर हो जाते हैं। इस बार भी फिलहाल उत्तर प्रदेश में विपक्ष अपनी उम्मीदों पर पानी फिरते देख रहा है। लेकिन क्या ये मान लेना चाहिए कि भाजपा की इस जीत में विपक्ष का टुकड़े टुकड़े होना एक बार फिर काम आया। समाजवादी पार्टी के लिए ये बेशक एक राहत की बात है कि वह पिछली बार की अपनी 47 सीटों से बढ़कर लगभग सवा सौ सीटों तक पहुंच गई है और निश्चित तौर पर इस बार एक मजबूत विपक्ष के तौर पर वह सरकार पर दबाव बनाने की स्थिति में नजर आ सकती है। छोटी पार्टियों से गठबंधन के अखिलेश यादव के फार्मूले ने काम तो किया लेकिन उसके लिए बसपा और कांग्रेस का साथ न आना या उन्हें दूर रखना नुकसानदेह साबित हुआ।
भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां 325 से खिसक कर पौने तीन सौ तक आ गईं, इससे ये तो संकेत मिलते ही हैं कि कहीं न कहीं जनता की नाराजगी भी सरकार से रही ही है और इसका फायदा कुछ हद तक सपा गठबंधन को मिला है। लेकिन जो लोग ये मान कर बैठे थे कि इस बार जमीनी हकीकत कुछ और है और योगी दोबारा नहीं आने जा रहे, इससे उन्हें झटका तो जरूर लगा है। ये भी कहा जा रहा था कि भाजपा बेशक दोबारा सत्ता में आ जाए, लेकिन योगी मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे, ये भी गलत साबित होने जा रहा है।
ऐसे में सबसे ज्यादा सोचने की जरूरत कांग्रेस और बसपा को है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इस दौरान खूब मेहनत की, नए सिरे से प्रदेश में कांग्रेस को खड़ा करने में जी जान लगा दिया, लेकिन सीटें पिछली बार की तुलना में 4 और कम हो गईं। सात से सिमट कर वह तीन पर आ गई, वही हाल बसपा का हुआ। जाहिर है यूपी में अब इन दोनों पार्टियों के लिए फिर से खड़ा हो पाना आसान नहीं है।
ऐसे में आने वाले वक्त में अगर कुछ उम्मीद है तो वह समाजवादी पार्टी से ही है, बशर्ते की वह अपनी अगली रणनीति के लिए अभी से मेहनत करे और कम से कम 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर भाजपा को मजबूत टक्कर दे सके। फिलहाल इस रोमांचक मैच के मुकाबले इकतरफा दिख रहे हैं और विपक्ष को ये सोचने को मजबूर कर रहे हैं कि उनसे गलती कहां हुई।