आजकल राजमार्गों को चौड़ा करने का काम दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, जो परिवहन के लिए तो अच्छा है ही, साथ ही समय की भी बचत होती है और यात्रा के दौरान होने वाली परेशानियों से भी बचा जा सकता है, क्योंकि राजमार्गों से पहले हमें यात्रा के दौरान परेशानियों का सामना करना पड़ता था। लेकिन इसके लिए हमें इस राजमार्ग के लिए विस्तारित अधिकतम सीमा तक काटे गए पेड़ के रूप में पर्यावरण के प्रभाव का सामना करना होगा। कटे हुए पेड़ों की जगह पर नया पेड़ उगाने के लिए हाई कोर्ट के निर्देश हैं और सरकार भी ऐसा ही करती है।लेकिन कभी-कभी ऐसा महसूस होता है कि पौधे निर्देशों की पूर्ति के लिए लगाए गए हैं, लेकिन कुछ समय बाद पेड़ों की उचित देखभाल नहीं हो पाती है, इसलिए या तो वे सूख जाते हैं या अपने आप नष्ट हो जाते हैं।
अब रामपुर, रुड़की के पास प्रतिष्ठित कॉलेज से सालियर तक सड़क पर काम चल रहा है और ज्यादातर हरे पेड़ या तो काट दिए गए हैं या जल्द ही काटे जाने वाले हैं।जबकि नये वृक्षारोपण के प्रावधान के संबंध में कोई जानकारी नहीं है. जबकि पौधा पेड़ काटने से पहले लगाया जाना चाहिए और ठेकेदार को उस अनुबंध में तय किया जाना चाहिए कि वह इन पेड़ों की तब तक देखभाल करे जब तक कि वे स्वयं मजबूती से खड़े न हो जाएं।जितना हम इन चीजों से बचेंगे उतना ही नई पीढ़ी प्रदूषण से प्रभावित होगी और नई पीढ़ी पर पड़ने वाले इन बुरे प्रभावों के लिए हम ही जिम्मेदार होंगे सरकार नहीं I अब ऐसा लग रहा है कि पेड़ कह रहे हैं कि देखलो आज कल मा हू ना हू.
नई पीढ़ी और उत्तराखंड के कल्याण के लिए जहां पेड़ काटे जा रहे हैं वहां यह देखना दायित्व बनता है कि नया पौधा लगाया गया है या नहीं। अगर हमें नई पीढ़ी और उत्तराखंड को भी बचाना है।…
सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश, नई पीढ़ी स्वस्थ और सुरक्षित रहनी चाहिए.
महेश मिश्रा (देशहित न्यूज)
कानूनी & राजनीतिक विश्लेषक पत्रकार (अधिवक्ता)