राम माधव ने कहा, ऐसा सोचने की आवश्यकता नहीं है कि यह ‘मेरे जीवनकाल में हल हो जाना चाहिए. यह हल होने वाला नहीं है, क्योंकि आप केवल किसी देश से नहीं निपट रहे, बल्कि आप एक सभ्यता, एक सांस्कृतिक विरासत से निपटने की बात कर रहे हैं.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सदस्य राम माधव ने मंगलवार यानी 14 जून को कहा कि भारत-चीन सीमा मुद्दे को लेकर यह रवैया काम नहीं करेगा कि ‘‘वैसे मुझे इस विवाद को अपने जीवनकाल में सुलझा लेना चाहिए.” विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित (सेवानिवृत्त) कर्नल अनिल भट्ट की पुस्तक ‘चाइना ब्लडीज बुलेटलेस बॉर्डर्स’ का विमोचन में शामिल हुए, इस समारोह में लोगों को संबोधित करते राम माधव ने कहा कि किसी को भी इसे ‘‘विरासत का मुद्दा” नहीं बनाना चाहिए. उन्होंने कहा, (भारत-चीन सीमा विवाद के) समाधान के लिए जल्दीबाजी मत कीजिए.

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राम माधव ने कहा, ऐसा सोचने की आवश्यकता नहीं है कि यह ‘मेरे जीवनकाल में हल हो जाना चाहिए. यह हल होने वाला नहीं है, क्योंकि आप केवल किसी देश से नहीं निपट रहे, बल्कि आप एक सभ्यता, एक सांस्कृतिक विरासत से निपटने की बात कर रहे हैं. उन्होंने दलील दी कि लंबे समय से चल रहे इस गतिरोध का हल तलाशने में किसी भी तरह की ‘‘जल्दबाजी” चीन जैसे ‘‘सांस्कृतिक देश” से निपटने में मददगार नहीं होगी.
चीन-रूस सीमा विवाद का दिया हवाला
उन्होंने कहा, ‘‘क्या आपको पता है कि तत्कालीन सोवियत संघ और चीन के बीच सीमा के सबसे बड़े विवाद को पूरी तरह से नशे में धुत रहने वाले नेता बोरिस येल्तसिन (रूस के प्रथम राष्ट्रपति) ने हल किया था. अब, किसने यह कल्पना किया होगा कि येल्तसिन इस मुद्दे का आखिरकार समाधान कर लेंगे. लेकिन उन्होंने किया और इसका श्रेय उन्हें जाता है.

उन्होंने कहा कि भारतीय बहुत ‘‘रोमांटिक और आदर्शवादी संस्कृति’’ में प्रशिक्षित हैं, जहां युद्ध रणनीति में भी हम अर्जुन के पक्षी की आंख पर ध्यान केंद्रित करने को याद करते हैं जबकि दूसरी तरफ चीन एक बार में पांच चीजों को निशाना बनाने में यकीन रखता है.