नई दिल्ली: सनातन धर्म में चार धाम यात्रा का विशेष महत्व है। इस साल की उत्तराखंड चार धाम यात्रा की शुरुआत अक्षया तृतीया के शुभ अवसर पर 22 अप्रैल से शुरु हो गई है। 22 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री के दरबार खोल दिए गए हैं। वहीं, केदारनाथ धाम के कपाट आज यानि 25 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 20 मिनट पर खुल चुके है और बद्रीनाथ धाम के कपाट 27 अप्रैल को सुबह सात बजे खोल दिए जाएंगे। बता दें, आज केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद ही खराब मौसम के कारण मौसम विभाग ने 29 अप्रैल तक बर्फबारी और बारिश को लेकर अलर्ट जारी किया है। नए यात्रियों को यात्रा पर आने से रोका जा रहा है। वहीं, जो लोग यात्रा कर रहे हैं, उन्हें भद्रकाली और व्यासी में रोका जा रहा है। लोगों को फिलहाल यात्रा शुरू न हो जाने तक ऋषिकेश में रुकने को कहा गया है। बता दें, केदारनाथ यात्रा में खराब मौसम की वजह से 30 अप्रैल तक केदारनाथ के लिए तीर्थयात्रियों के रजिस्ट्रेशन पर रोक लगा दी है। वहीं, अगर बात करें, चारों धामों की तो, हिन्दू धर्म में चार धाम अत्यधिक पूजनीय माने जाते है और चार धाम यात्रा का आध्यात्मिक महत्व है धार्मिक मान्यता है कि चार धाम यात्रा करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। आज हम आपको विस्तार से चारों धाम के बारे में बताएंगे।
यमुनोत्री धाम

यमुनोत्री धाम हिन्दू धर्म की आस्था के प्रमुख केंद्र चार धामों में पहला धाम है। यमुनोत्री धाम गढ़वाल हिमालय के उत्तरकाशी में स्थित है। इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 3235 मीटर है। चार धाम का पहला पड़ाव होने के कारण यहां यात्रा के प्रारंभ में भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। यमुनोत्री, यमुना नदी का उद्गम स्थल है, यमुना नदी बन्दरपूँछ के समीप स्थित कालिंद पर्वत के नीचे चंपासर ग्लेशियर से निकलती है। जिसके कारण यमुना को कालिंदी भी कहा जाता है। कालिंद सूर्य भगवान का दूसरा नाम है। इस प्रकार यमुना सूर्य की पुत्री हुई। कहते हैं भगवान सूर्य की पत्नी की दो संतान थी यम और यमुना। यमुना नदी के रूप में पृथ्वी पर बहने लगी तथा यमराज को मृत्यु लोक मिला। मान्यता है कि यमुना ने अपने भाई यमराज से भाईदूज के मौके पर वरदान मांगा कि जो भी व्यक्ति भाईदूज के दिन यमुना में स्नान करे उसे यम लोक न जाना पड़े। इसलिए ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी यमुना की पवित्र निर्मल जल धारा में स्नान करता है। वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो कर मोक्ष को प्राप्त करता है।
गंगोत्री धाम

हिंदुओं के प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के राजा भागीरथी ने अपने पूर्वजों को उनके किए गए पापों से भी मुक्त कराने के लिए एक पवित्र शिलाखंड पर ध्यान लगाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। किंबदंतीयों के अनुसार, रघुकुल के राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया था। जिसमें राजाओं द्वारा अनुष्ठान के लिए अश्व को चाराें दिशाओं में यात्रा करवायी जाने वाली थी। राजा सागर द्वारा जिस घोड़े को यज्ञ के लिये यात्रा की जाने थी। उसे अपने साथ लेकर राजा सागर के साठ हजार पुत्र और उनकी दूसरी रानी केसानी का पुत्र असमाजा पृथ्वी के चारों ओर निर्बाध यात्रा कर रहे थे। उस समय इंद्र देवता को ऐसा लगा कि यदि राजा सगर का यह यज्ञ सफल हो गया तो वह अपना सिंहासन खो देंगे। इसलिए उन्होंने उनका यज्ञ भंग करने के लिए उस घोड़े को चुरा लिया और उसे महर्षि कपिल के आश्रम में ले जाकर बांध दिया। उस समय महर्षि कपिल कठोर ध्यान में लगे हुए थे। जब उनके पुत्रों ने घोड़े को उनके आश्रम में पाया तो उन्होंने तुरंत उनके आश्रम पर आक्रमण कर दिया। जिससे कि महर्षि कपिल की तपस्या भंग हो गई और उन्होंने आंखें खोलने के बाद राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को नष्ट होने का श्राप दे दिया। कहा जाता है कि राजा सगर के पोते महाराजा भगीरथ में अपने अपने इन्हीं पूर्वजों को पाप से मुक्त करके मोक्ष दिलाने के लिए देवी गंगा को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी कठोर तपस्या के परिणाम स्वरूप भगवान शिव उनसे काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने उनके पूर्वजों को पाप से मुक्त करने के लिए गंगा माता को पृथ्वी पर उतरने का आदेश दिया। गंगा माता की तीव्र और प्रचंड धाराओं को नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटा में उतारा फिर उसके बाद वह पृथ्वी पर आई।
केदारनाथ धाम

भगवान भोलेनाथ के इस धाम की कहानी बेहद अनोखी है। मान्यता है कि केदारनाथ में भक्त और भगवान का सीधा मिलन होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान उनसे रुष्ट थे। पांडव उनके दर्शनों के लिए केदार पहुंचें। इसके बाद शिवजी ने बैल का रूप धर लिया और अन्य पशुओं के बीच चले गए। तब भीम ने विशाल रूप धारण किया और दो पहाडों पर अपने पैर फैला दिए। इस दौरान सभी पशु निकल गए लेकिन बैल बने भगवान शिव पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। इसके बाद भीम बलपूर्वक बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शिव पांडवों की भक्ति और दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए और दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। मान्यता है कि तब से भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। भारतवर्ष में स्थापित पांच पीठों में केदारनाथ धाम सर्वश्रेष्ठ है। मान्यता है कि यहां पहुंचने मात्र से भक्तों को समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही सच्चे मन से जो भी केदारनाथ का स्मरण करता है। उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
बद्रीनाथ धाम

पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री विष्णु की इस भूमि में यानी कि बद्रीनाथ में पहले भगवान भोलेनाथ का निवास स्थान था। शिव यहां पर अपने परिवार के साथ वास करते थे लेकिन एक दिन भगवान विष्णु, जब ध्यान करने के लिए स्थान की खोज में थे तो उन्हें यह स्थान दिखाई दिया। यहां के वातावरण को देखकर वह मोहित हो गए लेकिन वह जानते थे कि यह तो उनके आराध्य का निवास स्थान है। ऐसे में वह उस जगह पर कैसे निवास करते। तभी प्रभु के मन में लीला का विचार आया और उन्होंने एक बालक का रूप लेकर जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में मां पार्वती की नजर उनपर पड़ी तो वह बालक को चुप कराने का प्रयास करने लगीं लेकिन वह तो चुप ही नहीं हो रहा था। इसके बाद माता उसे लेकर जैसे ही भीतर प्रवेश करने लगी लेकिन भोलेनाथ समझ गए कि यह तो श्री हरि हैं। उन्होंने मां पार्वती से कहा कि बालक को छोड़ दें वह अपने आप ही चला जाएगा लेकिन मां नहीं मानी और उसे सुलाने के लिए भीतर लेकर चली गईं। जब बालक सो गया तो मां पार्वती बाहर आ गईं। इसके बाद शुरू हुई विष्णु की एक और लीला। उन्होंने भीतर से दरवाजे को बंद कर लिया और जब भोलेनाथ लौटे तो भगवान विष्णु ने कहा कि यह स्थान मुझे बहुत पसंद आ गया है। अब आप यहां से केदारनाथ जाएं, मैं इसी स्थान पर अपने भक्तों को दर्शन दूंगा। इस तरह शिवभूमि भगवान विष्णु का धाम बद्रीनाथ कहलाई और भोले केदारनाथ में निवास करने लगे।