गोला गोकर्णनाथ के नाम से विख्यात छोटी काशी का पौराणिक शिव मंदिर न केवल भक्ति और आस्था का केंद्र है, बल्कि यह श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण भी है। सावन माह के तीसरे सोमवार को यहां करीब 2 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद जताई जा रही है। बम बम भोले के जयकारों से गूंज उठी छोटी काशी गोला।
पौराणिक महत्व और मान्यताएं
गोला गोकर्णनाथ का यह शिव मंदिर पुराणों और लोक कथाओं में वर्णित है। मान्यता है कि भगवान शंकर ने यहां मृग रूप में विचरण किया था। वराह पुराण में वर्णित है कि भगवान शिव वैराग्य उत्पन्न होने पर यहां के वन क्षेत्र में रमणीय स्थल पाकर यहीं रम गए। ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र ने उन्हें ढूंढते हुए यहां आकर अद्भुत मृग को सोते देखा और समझ गए कि यही शिव हैं। देवताओं ने उनका पीछा किया और उनके सींग पकड़ लिए, जो तीन टुकड़ों में विभक्त हो गया। इन टुकड़ों को ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र ने विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया।
त्रेतायुग की लोक मान्यता
त्रेतायुग में भगवान शिव लंकापति रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उसके साथ लंका जाने लगे। भगवान शिव ने शर्त रखी कि उन्हें रास्ते में कहीं भी रखा गया, तो वह वहीं रह जाएंगे। रावण ने एक चरवाहे को शिवलिंग देकर कहा कि वह उसे भूमि पर नहीं रखेगा। चरवाहे ने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया और रावण उसे वापस उठाने में असफल रहा। गुस्से में रावण ने शिवलिंग को अपने अंगूठे से भूमि में दबा दिया।
मंदिर का जीर्णोद्धार
मंदिर का 2016 में आवास विकास योजना के तहत एक करोड़ 10 लाख रुपये की लागत से जीर्णोद्धार कराया गया था। 2014 में शिव सेवार्थ समिति ने शिव भक्तों के सहयोग से तीर्थ के मध्य विशालकाय भगवान शिव की मूर्ति स्थापित की। अब वर्ष 2022 से इस धार्मिक स्थल को कॉरिडोर के रूप में विकसित करने की कवायद चल रही है।
जूना अखाड़ा के नागा साधु रहे हैं मंदिर के सर्वराकार
करीब डेढ़ सदी पहले जूना अखाड़ा के नागा साधु शिव मंदिर का सर्वराकार हुआ करता था। जो छत्र लगे हाथियों पर सवार होकर यहां आते थे। बाद में जूना अखाड़ा के नागा पंथ ने ही गोस्वामी समाज को मंदिर की देखरेख का दायित्व दिया था। मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया। इसके प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। पूर्व में शिव मंदिर एक गोल मठिया के रूप में छोटा मंदिर था। वर्तमान में जनार्दन गिरि पौराणिक शिव मंदिर कमेटी के अध्यक्ष हैं।
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