करवा चौथ व्रत क्यों करते है:
हिंदू धर्म में हर एक व्रत का अलग महत्व होता है, लेकिन करवा चौथ के व्रत एक अलग ही मह्त्व होता जो इसे और विशेष बनाता है। करवा चौथ का व्रत विवाहित महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस व्रत को महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है जो इस बार 24 अक्टूबर, 2021 रविवार को है।
लेकिन क्या आप जानते है कि असल में इस व्रत के नाम का क्या अर्थ है। करवा चौथ दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें ‘करवा’ का अर्थ ‘मिट्टी का घड़ा’ और ‘चौथ’ का अर्थ ‘चतुर्थी’।
सभी विवाहित महिलाएं इस व्रत की सभी रस्मों को बड़ी श्रद्धा के साथ निभाती हैं। करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के बीच मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।
करवा चौथ व्रत का शुभ मुहूर्त:
प्रारंभ – 24 अक्टूबर सुबह 3:01 बजे से ।
समाप्त – 25 अक्टूबर सुबह 5:43 बजे से ।
अर्घ का समय 24 अक्टूबर शाम 6.55 बजे से रात 8.51 बजे तक।
व्रत की पूजा सामग्री:
करवा चौथ व्रत में काम आने वाली आवश्यक सामग्री में मिट्टी का करवा और ढक्कन, पानी का लौटा, गंगाजल, दीपक, रूई, चंदन, कुमकुम, रोली, अक्षत, फूल, कच्चा दूध, दही, घी, शहद, चीनी, हल्दी, चावल, मिठाई, चीनी का बूरा, मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलवा।
व्रत की पूजा विधि:
इस दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान कर लें। जो भोजन आपको सरगी के रूप में मिला है उसे ग्रहण करे और पानी पिएं। फिर निर्जला व्रत रखने का संकल्प लें। शिव परिवार और श्रीकृष्ण को एक चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद करवा माता का चित्र लगाकर दीपक जलाएं और करवा लेकर उस पर स्वस्तिक बना लें।
करवा चौथ की पूजा के लिए शाम के समय मिट्टी की वेदी बनाएं और उस पर सभी देवताओं को स्थापित करें और उस पर करवा रखें। एक थाली में धूप, दीपक, चंदन, रोली, सिंदूर रखें और उसमें घी का दीपक जलाएं। चंद्रमा के उदय होने से एक घंटे पहले पूजा शुरू करे। करवा में दूध, पानी और गुलाब जल मिलाएं। अब करवा चौथ की कथा सुनें।
अब शाम को चांद निकलने के बाद छलनी से चांद को देखें। चंद्रमा की पूजा के बाद अर्घ्य दें।
इसके बाद महिला को अपने पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलना चाहिए। थाली में मिठाई, फल, मेवा, रुपए आदि सास को दें। साथ ही उनसे सौभाग्यवती का आशीर्वाद लें। इसी के साथ व्रत रखने वाली महिला को काले और सफेद कपड़े नहीं पहनने चाहिए। इस दिन लाल और पीले रंग के वस्त्र धारण करना शुभ होता है।
करवा चौथ व्रत कथा:
एक बार की बात है एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी।
साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।
साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।
साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया।
इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।