मोहिनी एकादशी का व्रत रखने से सभी पापों से मिलती है मुक्ति,जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

12 May, 2022
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मोहिनी एकादशी व्रत : वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। हिंदू धर्म में इस दिन का बड़ा ही विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखने वालों को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। मोहिनी एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य को मोह जाल से भी छुटकारा मिल जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-उपासना की जाती है।

पुराणों के मुताबिक, जब समुद्र मंथन हो रहा था और उससे जब अमृत कलश निकला, तो देवताओं और दानवों में युद्ध छिड़ गया था। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अमृत कलश से अमृत देवताओं को पिला दिया। जिससे सभी देवता गण अमर हो गए। कहा जाता है कि जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था उस दिन वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी की ही तिथि थी। इसलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।

मोहिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त :

मोहिनी एकादशी का पर्व 12 मई, 2022 दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। जिसका आरंभ: 11 मई 2022, बुधवार शाम को 07:31 मिनट से शुरू होगा वहीं इसका समापन 12 मई 2022, गुरुवार शाम को 07:24 मिनट पर हो जाएगा।,

मोहिनी एकादशी की संपूर्ण पूजा विधि :

मोहिनी एकादशी के पावन दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान आदि करें। फिर घर की साफ-सफाई करके पूजा स्थान और पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें। अब एक लकड़ी का साफ पाटा या चौकी लेकर उसपर लाल वस्त्र बिछाएं। चौकी को गंगाजल से शुद्ध करें और भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को चौकी पर स्थापित करें। अब भगवान की मूर्ति पर पीले रंग के पुष्प चढ़ाकर धूप और दीप जलाएं फिर व्रत का संकल्प लें।

इसके बाद कलश की भी स्थापना करें। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पंचामृत और तुलसी के पत्ते चढ़ाएं।इसके अलावा मिठाई का भोग लगाएं और अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें। आरती के बाद, 11 या 21 बार ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ “ इस मंत्र का उच्चारण करें। कहा जाता है कि मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के मंत्र का जाप और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ विशेष फलदायी होता है।

मोहिनी एकादशी की व्रत कथा :


एक बार अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में पूछा। जिस पर श्रीकृष्ण ने कहा, “हे अर्जुन! मैं एक पौराणिक कथा सुनाता हूं। इस कथा को महर्षि वशिष्ठ जी ने श्री रामचन्द्रजी को सुनाया था। इसे आप ध्यानपूर्वक सुने। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, एक बार श्री राम ने महर्षि वशिष्ठ से कहा, ‘हे गुरु श्रेष्ठ! मैंने जनक नंदिनी सीता के वियोग में बहुत कष्ट भोगे हैं। अतः मेरे कष्टों का नाश कैसे होगा? क्या आप मुझे इसके लिए कोई व्रत बताएंगे, जिससे मेरे सभी पाप और कष्ट दूर हो जाएं।

श्रीराम की बातें सुन महर्षि वशिष्ठ ने कहा, ‘हे श्रीराम! आपने बहुत उत्तम प्रश्न किया है। आपके नाम के स्मरण मात्र से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है। फिर भी आपने जगत हित में एक बड़ा ही उत्तम प्रश्न किया है। आज मैं आपको एकादशी व्रत के बारे में बताता हूं। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के सभी पाप और क्लेश दूर हो जाते हैं। हे राम! हर मनुष्य को एकादशी का उपवास रखना चाहिये।

आप इसकी कथा को श्रद्धापूर्वक सुनें। प्राचीन समय में सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम का एक नगर था। उस नगर में एक धनपाल नाम का एक वैश्य रहता था। जो धन-धान्य से परिपूर्ण था।वह अत्यन्त धर्मात्मा और श्री नारायण का भक्त था। उसने नगर में लोगों के लिए कुएं, तालाब, धर्मशालाएं बनवाये थे। उस वैश्य के पांच पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़ा पुत्र पाप कर्मों में अपने पिता का धन लुटाता रहता था।

वह वेश्याओं और दुष्टों की संगति करता था। वह हर दिन मद्यपान और मांस का भक्षण करता था। काफी समझाने पर भी जब वह नहीं माना तो एक दिन दुखी होकर उसके पिता और भाईयों ने उसे घर से निकाल दिया। जिसके बाद वो जैसे तैसे गुजारा करने लगा। एक दिन वह भूख-प्यास से व्याकुल होकर चोरी करने चला गया। जहां सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और राजा के सामने प्रस्तुत किया।

जिसके बाद राजा ने उसे नगर से बाहर निकाल दिया। नगर से बाहर जंगल में एक दिन वह भटकते-भटकते कौटिन्य मुनि के आश्रम में जा पहुंचा। उसी वक्त कौटिन्य मुनि गंगा स्नान कर बाहर आये थे।तभी वह ऋषि के पास जाकर हाथ जोड़कर कहने लगा, ‘हे महात्मा! मैंने अपने जीवन में अनेक पाप किये हैं, कृपया आप उन पापों से छूटने का कोई उपाय बताएं।’

इसपर ऋषि ने कहा, ‘तू ध्यान देकर सुन, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत कर। इस एकादशी का नाम मोहिनी एकादशी है। इस दिन उपवास करने से तेरे सभी पाप और कष्ट दूर हो जाएंगे।’ ऋषि के वचन को सुन वह प्रसन्न हुआ और उनके बताए विधि से उसने मोहिनी एकादशी का व्रत रखा। महर्षि वशिष्ठ ने कहा, ‘हे श्रीराम! इस व्रत से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और अंत में वह बैकुंठ को चला गया।’

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