उत्तराखंड में बारिश की बूंदों को सहेजने की पहल, सारा के गठन को हरी झंडी

31 Oct, 2023
Deepa Rawat
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देहरादून, 31 अक्टूबर । केन्द्र सरकार ने जलस्रोतों को पुनर्जीवन देने के उद्देश्य से ‘कैच द रेन’ कार्यक्रम शुरू किया है। उत्तराखंड में भी बारिश की बूंदों को सहेजकर नौले- धारे व नदियों के संरक्षण एवं पुनरूद्धार के लिए धामी सरकार एक महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रही है। कैबिनेट बैठक में इसके लिए जलागम निदेशालय के अंतर्गत राज्य स्तरीय स्प्रिंग एंड रिवर रिज्युविनेशन अथारिटी (सारा) के गठन को हरी झंडी दे दी गई।

इस योजना के तहत अंतर्गत राज्य से लेकर ग्राम स्तर तक चार समितियां गठित की जाएंगी। राज्य में सभी नौले-धारे व नदियों का एटलस तैयार कर वर्षा जल संरक्षण के उपायों के दृष्टिगत मास्टर प्लान बनाया जाएगा। बारिश का पानी थामने के लिए नदियों के उद्गम से लेकर अंतिम छोर तक के जलसमेट क्षेत्रों में हजारों की संख्या में चेकडैम बनाने के साथ ही जल संरक्षण में सहायक पौधों का रोपण किया जाएगा।

जलस्रोतों के सूखने या इनमें जल स्तर कम होने की निरंतर सामने आ रही बातों को देखते हुए सरकार भी इस दिशा में सतर्क हो गई है। इसी क्रम में एकीकृत प्रयास करने के दृष्टिगत सारा के गठन का निश्चय किया गया। कैबिनेट की बैठक में इससे संबंधित प्रस्ताव को चर्चा के बाद स्वीकृति दे दी गई। सारा का गठन जलागम निदेशालय के अंतर्गत सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया जाएगा। सारा के लिए 195 पदों की स्वीकृति दी गई है। सारा के तहत चार समितियां गठित होंगी।

उच्चाधिकार प्राप्त समिति मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित होगी, जबकि राज्य स्तरीय कार्यकारी समिति जलागम के अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव अथवा सचिव की अध्यक्षता में होगी। इसके अलावा प्रत्येक जिले में डीएम की अध्यक्षता में जिला स्तरीय कार्यकारी समिति होगी। ग्राम स्तर पर धारा नौला संरक्षण समितियां ग्राम प्रधानों की अध्यक्षता में गठित की जाएंगी। ग्राम स्तरीय समिति में महिला समूहों की दो सदस्य भी शामिल की जाएंगी।

वहीं, नीति आयोग की रिपोर्ट भी सामने आई है जो बताती है कि राज्य में 300 से अधिक जलस्रोत या तो सूख चुके हैं या सूखने के कगार पर हैं। यही नहीं, 500 के लगभग पेयजल योजनाएं ऐसी हैं, जिनके स्रोत पर 90 प्रतिशत तक पानी कम हुआ है। इस सबको देखते हुए अब सरकार ने भी वर्षा जल संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने की ठानी है। वैसे भी राज्य में प्रतिवर्ष औसतन 1529 मिलीमीटर वर्षा होती है, जिसमें 1221 मिलीमीटर का योगदान अकेले मानसून सीजन का है।

यदि इस वर्षा जल को सहेज लिया जाए तो पेयजल संकट से निजात मिल सकती है। सारा के तहत संचालित होने वाली योजनाओं के वित्त पोषण के लिए बाह्य सहायतित योजनाओं की मदद भी ली जाएगी।

–आईएएनएस

स्मिता/एबीएम

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