नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामलों में जमानत को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि पीएमएलए के तहत मामलों में भी “जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद है।” यह फैसला झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी सहयोगी प्रेम प्रकाश को मिली जमानत के साथ आया है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए और पीएमएलए की धारा 45, जो धन शोधन मामले में आरोपी की जमानत के लिए दोहरी शर्तें निर्धारित करती है, इस सिद्धांत को फिर से नहीं लिखती है कि स्वतंत्रता से वंचित करना आदर्श है।
मनीष सिसोदिया मामले का हवाला: कोर्ट ने अपने फैसले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से जुड़े धन शोधन और भ्रष्टाचार मामलों में 9 अगस्त के फैसले का हवाला दिया। उस फैसले में भी कोर्ट ने कहा था कि व्यक्ति की स्वतंत्रता हमेशा नियम होती है और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया द्वारा उससे वंचित करना अपवाद है।
झारखंड हाई कोर्ट का फैसला हुआ खारिज: सुप्रीम कोर्ट ने प्रेम प्रकाश नामक व्यक्ति को जमानत दे दी, जिसे ईडी ने सोरेन का करीबी सहयोगी बताया है और उस पर राज्य में अवैध खनन में शामिल होने का आरोप है। शीर्ष अदालत ने उसे जमानत देने से इनकार करने संबंधी झारखंड उच्च न्यायालय के 22 मार्च के आदेश को खारिज कर दिया और निचली अदालत को मामले की सुनवाई में तेजी लाने का निर्देश दिया।
क्या है पीएमएलए: पीएमएलए एक कठोर कानून है जिसका उपयोग धन शोधन के मामलों में किया जाता है। इस कानून के तहत आरोपियों को जमानत मिलना मुश्किल होता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पीएमएलए के तहत मामलों में जमानत मिलना आसान हो सकता है।