गुजरात राज्य पेट्रोलियम निगम (GSPC) का मामला केवल एक वित्तीय घोटाला नहीं, बल्कि यह सरकारी उपक्रमों के प्रबंधन, सार्वजनिक धन के दुरुपयोग, और राजनीतिक प्रभाव के दुरुपयोग का एक ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत करता है।
- राजनीतिक दुरुपयोग और सत्ता का दुरुपयोग:
2005 में, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि GSPC ने कृष्णा-गोदावरी (KG) बेसिन में 20 ट्रिलियन क्यूबिक फीट गैस का भंडार खोजा है, जिसकी अनुमानित कीमत ₹2,20,000 करोड़ थी। यह दावा भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में प्रस्तुत किया गया। हालांकि, 2009 में प्रस्तुत “फील्ड डेवलपमेंट प्लान” में गैस भंडार का अनुमान 90% घटकर ₹8,465 करोड़ रह गया, और 2015 तक GSPC ने 10 ब्लॉकों को छोड़ दिया और ₹2,000 करोड़ का लेखा-रद्द किया। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि राजनीतिक नेतृत्व ने बिना ठोस वैज्ञानिक प्रमाण के बड़े दावे किए, जिससे सार्वजनिक विश्वास को ठेस पहुंची।
- आर्थिक दुरुपयोग और वित्तीय अनियमितताएँ:
GSPC ने बैंकों से लगभग ₹20,000 करोड़ का ऋण लिया, लेकिन न तो गैस का उत्पादन हुआ और न ही कोई वाणिज्यिक लाभ प्राप्त हुआ। इसके बजाय, यह राशि फर्जी बिलिंग, दिखावटी खर्च, और अपनों को अनुबंध देने में खर्च हुई। 2018 में, GSPC ने ₹14,923 करोड़ का घाटा स्वीकार किया और ₹15,000 करोड़ से अधिक की राशि चुकाने की आवश्यकता जताई। यह दर्शाता है कि सरकारी उपक्रम का वित्तीय प्रबंधन अत्यंत लापरवाह और अनियमित था, जिससे सार्वजनिक धन का भारी दुरुपयोग हुआ।
- अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण और वैश्विक प्रभाव:
GSPC ने Geo Global Resources नामक एक कंपनी के साथ साझेदारी की, जो केवल 6 दिन पहले मॉरीशस में पंजीकृत हुई थी और इसका कोई तकनीकी या वित्तीय अनुभव नहीं था। इसी प्रकार, Tuff Drilling नामक कंपनी को भी अनुबंध दिए गए, जबकि इसके पास गैस अन्वेषण का कोई अनुभव नहीं था। इन कंपनियों के चयन और अनुबंधों की प्रक्रिया में स्पष्ट अनियमितताएँ और संभावित भ्रष्टाचार के संकेत मिलते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, ऐसे घोटाले देशों की छवि को धूमिल करते हैं और विदेशी निवेशकों का विश्वास घटाते हैं।
- ONGC द्वारा अधिग्रहण और सार्वजनिक धन की रक्षा:
जब GSPC की वित्तीय स्थिति बिगड़ी, तो केंद्र सरकार ने ONGC से कहा कि वह GSPC के KG बेसिन ऑपरेशन में 90% हिस्सेदारी ₹8,000 करोड़ में खरीदे। इससे ONGC को ₹8,000 करोड़ का घाटा हुआ, जबकि GSPC के अधिकारियों को कोई दंड नहीं मिला। यह कदम GSPC की वित्तीय अनियमितताओं को छिपाने का प्रयास प्रतीत होता है। अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से, यह कदम सार्वजनिक धन की रक्षा के बजाय उसे और अधिक जोखिम में डालने जैसा था।
- मीडिया की चुप्पी और लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व:
जब इस घोटाले पर आवाज़ उठाई गई, तो मुख्यधारा मीडिया पर दबाव डाला गया और कई रिपोर्ट्स को दबा दिया गया। कांग्रेस पार्टी ने इस मामले की न्यायिक जांच की मांग की है, जबकि सरकार ने इसे एक सामान्य व्यापारिक निर्णय बताया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, मीडिया की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व की रक्षा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि ऐसे घोटालों का पर्दाफाश किया जा सके।
GSPC घोटाला सरकारी उपक्रमों के प्रबंधन में गंभीर खामियों, वित्तीय अनियमितताओं, और राजनीतिक प्रभाव के दुरुपयोग का उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस मामले की स्वतंत्र और पारदर्शी जांच आवश्यक है ताकि दोषियों को दंडित किया जा सके और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, भारत को अपनी छवि सुधारने और वैश्विक निवेशकों का विश्वास जीतने के लिए ऐसे घोटालों की निष्पक्ष जांच और दंडात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।