गणों के अधिपति श्री गणेश जी प्रथम पूज्य हैं सर्वप्रथम उन्हीं की पूजा की जाती है, उनके बाद अन्य देवताओं की पूजा की जाती हैं। किसी भी कर्मकांड में श्री गणेश की पूजा-आराधना सबसे पहले की जाती है क्योंकि गणेश जी विघ्नहर्ता हैं, और आने वाले सभी विघ्नों को दूर कर देते हैं। श्री गणेश जी लोक मंगल के देवता हैं, लोक मंगल उनका उद्देश्य है परंतु जहां भी अमंगल होता है, उसे दूर करने के लिए श्री गणेश अग्रणी रहते हैं। गणेश जी ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी हैं। इसलिए उनकी कृपा से संपदा और समृद्धि का कभी अभाव नहीं रहता।

श्री गणेश जी को दूर्वा और मोदक अत्यंत प्रिय है। उदयातिथि के अनुसार 19 सितंबर को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन पूजा मुहूर्त सुबह 10: 49 मिनट से दोपहर 01:16 मिनट तक रहेगा।
गणेश स्थापना की पूजाविधि
सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान गणेश की जल,पंचामृत रोली,अक्षत,सुपारी,जनेऊ,सिन्दूर,पुष्प,दूर्वा आदि से पूजा करें फिर लड्डुओं का प्रसाद लगाकर दीप-धूप से उनकी आरती उतारें। सुख-समृद्धि की कामना से गणेशजी के मंत्र ‘ॐ गं गणपतये नमः’ या ‘वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा’ का यथाशक्ति जप करें।गणेशजी के पूजन के समय प्रसाद के लिए बेसन या बूंदी के लड्डू या गुरधानी का प्रयोग किया जा सकता है।

गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने से गणेशजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं। कष्टों से निवारण और शत्रु बाधा से बचने के लिए ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का पाठ करना उत्तम रहता है। धान की खील से पूजा करना मान-सम्मान दिलाने वाला है,वहीं धन वृद्धि के लिए गणेशजी के साथ लक्ष्मी की पूजा प्रत्येक शुक्रवार को करनी चाहिए। सुख-समृद्धि व संतान प्राप्ति के लिए गणेशजी पर इस दिन सिन्दूर चढ़ाना शुभ होता है।
गणेशजी के पूजन व आरती के समय उनके पिता भगवान शिव, माता पार्वती,भाई कार्तिकेय,दोनों पत्नी रिद्धि व सिद्धि तथा दोनों पुत्र लाभ व क्षेम का ध्यान भी अवश्य करना चाहिए। पूजा-आरती के उपरांत चांदी या लकड़ी के डंडे अवश्य बजाने चाहिए, ऐसा करना बहुत शुभ माना गया है।