उमर खालिद के ‘जुमले’ वाले बयान से दिल्ली HC नाराज, आलोचना की इस भाषा पर जताई आपत्ति

28 Apr, 2022
Sachin
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दिल्ली हाईकोर्ट ने जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद के प्रधानमंत्री की आलोचना के दौरान ‘जुमला’ शब्द का इस्तेमाल किए जाने पर आपत्ति जताई है सुनवाई के दौरान अदालत ने दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका पर सवाल किया कि, क्या भारत के प्रधानमंत्री पर ‘जुमला’ शब्द का इस्तेमाल करना उचित है.

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद के प्रधानमंत्री की आलोचना के दौरान ‘जुमला’ शब्द का इस्तेमाल किए जाने पर आपत्ति जताई है सुनवाई के दौरान अदालत ने दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका पर सवाल किया कि, क्या भारत के प्रधानमंत्री पर ‘जुमला’ शब्द का इस्तेमाल करना उचित है. साथ ही कहा, आलोचना करने के दौरान भी एक ‘लक्ष्मण रेखा’ और भाषा स्तर भी होना चाहिए.   

जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस से कहा, खालिद अपने भाषण में प्रधानमंत्री के बारे में क्या कहते हैं? कुछ चंगा शब्द का उपयोग किया गया और उसके बाद यह जुमला शब्द भारत के प्रधानमंत्री के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है? पीठ ने फरवरी 2020 में अमरावती में खालिद के भाषण की क्लिप को कोर्टरूम में सुनने के बाद यह ये विशेष टिप्पणी की है.

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल

वहिन्दुसरी ओर याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से कहा कि सरकार या सरकारी नीतियों की आलोचना करना गैर कानूनी नहीं है. इतना ही नहीं, खालिद की ओर से अधिवक्ता ने कहा कि सरकार की आलोचना करना अपराध नहीं है. कोर्ट ने कहा कि ‘खालिद अपने भाषण में ‘चांगा’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था. इस पर खालिद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पेस ने  कहा कि ‘यह व्यंग्य है, सब चंगा सी का इस्तेमाल शायद पीएम ने ही अपने भाषण में किया था.

खालिद ने पीठ को बताया कि सरकार की आलोचना करना भारतीय संविधान में दिए नागरिक के अधिकारों के अनुसार अपराध नहीं हो सकता है. साथ ही उसने कहा कि सरकार की आलोचना करने वाले व्यक्ति के लिए आतंकवाद निरोधक कानून यानी गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के आरोपों के साथ 583 दिनों की जेल की परिकल्पना नहीं की गई थी.

दिल्ली दंगो में उमर खालिद को गिरफ्तार किया गया था

अधिवक्ता ने कहा कि हम इतने असहनशील नहीं हो सकते, अगर सरकार इसी तरह लोगों पर यूएपीए का इस्तमाल करेगी तो हम तो बोल ही नहीं पाएंगे. अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि उनके मुवक्किल खालिद के खिलाफ दर्ज मुकदमा अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ असहिष्णुता का परिणाम है.

पेस ने कहा सरकार के खिलाफ बोलने वाले व्यक्ति को यूएपीए के तहत जेल में 583 दिन रखने का कोई उल्लेख नहीं मिलता. हम इतने असहिष्णु नहीं हो सकते. उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति का बयान सभी को मंजूर नहीं हो सकता और उस पर नाराजगी सामने आ सकती है लेकिन यह देखना चाहिए कि क्या यह व्यक्ति द्वारा कथित रूप से किये गये किसी अपराध के समान है. खालिद के वकील ने कहा, क्या यह अपराध है? मुझे तो किसी भी तरह से यह अपराध नहीं लगता.

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