नई दिल्ली: संसद में लगातार रद्द हो रही कार्यवाही के बीच कांग्रेस ने बीजेपी पर बड़ा आरोप लगाया है। कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा है कि सरकार की तरफ से ऑफर दिया गया है कि अगर पार्टी जेपीसी की मांग छोड़ दे तो बीजेपी राहुल गांधी की माफी की मांग नहीं करेगी। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी इसी ओर इशारा करते हुए एक ट्वीट किया है, जिसमें उन्होंने कांग्रेस का रुख स्पष्ट किया है। जयराम रमेश ने ट्वीट में लिखा, ”पीएम से जुड़े अडानी घोटाले में विपक्ष की जेपीसी की मांग को बीजेपी द्वारा पूरी तरह से आधारहीन आरोपों के आधार पर राहुल गांधी की माफी की मांग से कैसे जोड़ा जा सकता है। जेपीसी की मांग वास्तविक और दस्तावेजों के आधार पर सामने आए घोटाले के लिए है। माफी की मांग अडानी मामले से ध्यान भटकाने के लिए है।” इसी के साथ कांग्रेस पार्टी की ओर से साफ किया गया है कि जेपीसी की मांग छोड़ने का सवाल ही नहीं उठता है।

कांग्रेस लगातार जेपीसी जांच की मांग पर अड़ी है

बता दें, 18 मार्च 2023 को भी कांग्रेस ने अडानी समूह से जुड़े मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से कराने की मांग पर एक बार फिर जोर दिया था। कांग्रेस ने सवाल किया कि इस बात की क्या गारंटी है कि इस प्रकरण की जांच के लिए बनी विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का हश्र पुरानी कुछ समितियों की रिपोर्ट की तरह नहीं होगा। कांग्रेस महासचिव रमेश ने आगे कहा, “सीमित अधिकारों के बाद भी विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का हश्र पिछली कुछ रिपोर्ट के जैसा न हो। पेगासस रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है। हालांकि, इसे जुलाई 2022 में प्रस्तुत कर दिया गया था। रमेश ने यह भी कहा था कि इस बात की क्या गारंटी है कि अडानी मामले में ऐसा नहीं होगा? इन सभी प्रासंगिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए क्या यह आवश्यक नहीं है कि इस मामले की जांच जेपीसी करे?
अडानी समूह ने सारे आरोपों को बताया था गलत

बता दें, हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह के खिलाफ फर्जी तरीके से लेन-देन और शेयर की कीमतों में हेर-फेर सहित कई आरोप लगाए थे। जवाब में अडानी समूह ने इन आरोपों को झूठा करार देते हुए कहा था कि उसने सभी कानूनों और प्रावधानों का पालन किया है।
क्या होती है जेपीसी जांच ?

संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी संसद की वह समिति होती है, जिसमें सभी पार्टियों की बराबर भागीदारी होती है। जेपीसी को यह अधिकार मिला होता है कि वह किसी भी व्यक्ति, संस्था या किसी भी उस पक्ष को बुला सकती है और उससे पूछताछ कर सकती है, जिसको लेकर उसका गठन हुआ है। अगर वह व्यक्ति, संस्था या पक्ष जेपीसी के समक्ष पेश नहीं होता है तो यह संसद की अवमानना माना जाता है। इसके बाद जेपीसी संबंधित व्यक्ति या संस्था से इस बाबत लिखित या मौखिक जवाब या फिर दोनों मांग सकती है।
क्या होती है जेपीसी की ताकत ?

संसदीय समितियों की कार्यवाही गोपनीय होती है, लेकिन प्रतिभूति और बैंकिंग लेन-देन में अनियमितताओं के मामले में एक अपवाद है। इसमें समिति निर्णय लेती है कि मामले में व्यापक जनहित को देखते हुए अध्यक्ष को समितियों के निष्कर्ष के बारे में मीडिया को जानकारी देनी चाहिए। मंत्रियों को आम तौर पर सबूत देने के लिए जेपीसी नहीं बुलाती है। हालांकि, प्रतिभूति और बैंकिंग लेनदेन की जांच में दोबारा अनियमितताओं के मामले में फिर एक अपवाद है। इस मामले में जेपीसी अध्यक्ष की अनुमति के साथ, मंत्रियों से कुछ बिंदुओं पर जानकारी मांग सकती है। किसी मामले में साक्ष्य मांगने को लेकर विवाद पर अंतिम शक्ति समिति के अध्यक्ष के पास होती है।
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