मूर्धन्य कवयित्री महादेवी वर्मा: जयंती पर स्मरण

26 Mar, 2024
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आज, 26 मार्च 2024 को, भारती हिंदी साहित्य की मूर्धन्य कवयित्री महादेवी वर्मा की जयंती है। इस अवसर पर, हम उनके जीवन और कृतित्व को स्मरण कर अपने पाठकों को महान् कवियत्री द्वारा हिंदी साहित्य में किए योगदान से परिचित कराने का प्रयास करेगें ।

जीवन परिचय:

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को  वर्तमान उत्तर प्रदेश में स्थित फर्रुखाबाद जिले में हुआ था। सात पीढ़ियों बाद घर में जन्मी बलिका से उनके प्रध्यापक पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा और माता श्रीमती चंद्रावती देवी अत्यंत प्रसन्न थें और इसलिए परिजनों उन्हें देवी स्वीकार कर उनका नाम महादेवी रखा था।

बाल्यावस्था से ही कुशाग्र बुद्धि की होने के कारण महादेवी कविताएं लिखने लगी थीं । बर्ष 1929 में वे प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राध्यापिका के रूप में कार्यरत हुईं और 1954 से 1962 तक वे इस विद्यापीठ की कुलपति भी रहीं।

कृतित्व:

महादेवी वर्मा छायावादी युग की प्रमुख कवियित्री थीं,उनकी रचनाओं में वेदना, करुणा, रहस्यवाद और प्रकृति के प्रति प्रेम का अद्भुत चित्रण मिलता है।

कविताएं: नीरजा (1930) रश्मि (1932) नीहार (1934) सांध्यगीत (1936) दीपशिखा (1942) यामा (1940) सप्तपर्णा (1949) गद्य रचनाएं: अतीत के चलचित्र (1940) स्मृति की रेखाएं (1942) पथ के साथी (1946) मेरा परिवार (1954)

उदाहरण:

यहां हम अपने पाठकों को उनकी एक रचना ‘नीहार’ से एक कविता का अंश दे हिंदी साहित्य में उनकी विशेषज्ञता और कुशलता से परीचित कराने का प्रायस करेगें:

नीहार न जाने कैसे, न जाने कब, आँखों में नीहार उतर आया।

अब नयन-नीर की धारा से, हृदय-पट पर चित्र उभर आया।

लेखन विशेषताएं:

सरल, प्रवाहपूर्ण और भावपूर्ण भाषा का प्रयोग से स्त्री-जीवन में होने वालें संघर्षों, वेदनाओं और आकांक्षाओं को उजागर करती हैं। प्रकृति के प्रति प्रेम और रहस्यवाद का चित्रण

पुरस्कार और सम्मान:

महादेवी वर्मा को साहित्य के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए ‘पद्म भूषण’ और ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया था। 1982 में उन्हें ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया।

निष्कर्ष:

महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की एक चमकदार तारिका थीं। उनकी रचनाएं सदैव प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।

संदीप उपाध्याय

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